समय को चक्र (निमाड़ी कहानी)

भारत में कई बोलियां बोली जाती हैं। मध्य प्रदेश के खंडवा एवं खरगोन क्षेत्र में निमाड़ी बोली बोली जाती है यहां उसी भाषा में एक स्वरचित कहानी प्रस्तुत कर रही हूं।

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Ekta Kashmire
Ekta Kashmire 12 May, 2020 | 1 min read

झाड़ सी झड़ता पत्ता नऽखऽ देखी नऽ नऽ कोंपळ नऽ हंसी रई थीं नऽ!

"डोकरा हुई गयाज वोऽ ईऽ पत्ता..... केत्ता सळ आई गयाज इन्नऽ नऽ प! पेळा पड़ी गयाज... इन्नऽ नऽ खऽ तो टूटी नऽ नऽ पड़ी जाणु चायजे...... एत्तो अच्छो झाड़ छे, नऽ ई जूना पत्ता...खोबज निस्सैड़ा छे।

"इन्नऽ नऽ खऽ शरम बी नी आवती हंईं, जंवंऽ तक भरभर हवा इन्नऽ नऽ खऽ झड़ाई नी दे, ई

निस्सैड़ा चिपकेलऽज रह्यगा देखजे!"

"बईण अपुण केत्रा चमकी रह्याज, अऽनंऽ अपणो रंग भी केत्रो हरो छम्म छे, असा भपका पान नऽसीज झाड़ बी अच्छो देखाएज ।"

"सच्ची वात छे बईण।"

*"हंसत कोंपळई झड़त पान।

जे दिन हमखऽ ते दिन तुमखऽ।"*

जूना पत्ता नऽ नवा नऽखऽ सीख दी..... नऽ उ भी झड़ी गयो।

*ट्रांसलेशन* :-

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पेड़ से झड़ते पत्तों को देख, नयी कोंपले हंस रही थीं।

"हुंह ये बूढ़े पत्ते.....कितनी सलवटें हैं इन पर, और रंग भी पीला पड़ चुका है। इन्हें तो खुद ही पेड़ छोड़कर चले जाना चाहिए.......खामखां पेड़ की सुंदरता बिगाड़ रहे हैं।

"बेहयाई की हद तो देखो, जब तक तेज़ हवा इन्हें झड़ा न दे यह बेशर्म की तरह वहीं चिपके रहते हैं।"

"देखो हम कितने चमकदार व रंगतदार हैं, ऐसी खूबसूरत पत्तियों से ही पेड़ की सुंदरता बढ़ती है।"

"हंसती हैं कोपलें, झड़ते हैं पान

समय के चक्र को, तुम लो जान।"

यह कह वह आख़िरी पत्ता भी झड़ गया।

एकता कश्मीरे

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