ख्वाहिशें

ख्वाहिशें

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Divya Gosain
Divya Gosain 26 Jun, 2022 | 1 min read
ख्वाहिशें

ख्वाहिशें



कुछ कहना चाहता हूं पर जाने क्यों अब लफ़्ज़ों की कमी सी लगती है,

पर ऐसा नहीं है की मैंने अब लिखना ही छोड़ दिया है,


जाने कौन सा पड़ाव है उम्र का कि अब थोड़ा थकने लगा हूं, शायद इसलिए मिलों दूर तक जाना ही छोड़ दिया है,

पर ऐसा नहीं की मैंने चलना ही छोड़ दिया है,


बेहद करीब थे वो रिश्ते जो आज बहुत दूर हुए हैं,

पर ऐसा नहीं है की मैंने अपनों की फ़िक्र करना छोड़ दिया है,


हां, थोड़ा अकेला सा महसूस करता हूं खुद को इन गैरों की भीड़ में,

और अब इन नम गालों को अपने खुद ही सुखा दिया करता हूं,


चलो माना लबों पर उनके आज मेरा ज़िक्र नहीं है,

पर यकिनन फ़िक्र तो ज़हन में मैं आज भी उनकी भी करता हूं,


होता गर मुमकिन तो एक मुस्कान की वजह फिर बन आता,

पर अब मैंने अपनी ख्वाहिशों का जिक्र करना ही छोड़ दिया है।


दिव्या G.

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Divya Gosain

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