अनुराग

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Divya Gosain
Divya Gosain 27 Feb, 2023 | 1 min read

कारवां लिए साथ हम जब भी चले,

अकेला हर मोड़ पर खुद को हमने तो पाया है,


जिसे ढूंढ़ा था कभी दर मदीने में,

इनायत में उसी रब की खुद को सिमटा पाया है,


नक़ाब पेशों की महफ़िल सजी है ज़माने में, 

उस भीड़ में अपने ज़ख़्मो को खुद ही सहलाया है,


चाहा तराशना जब भी अल्फाज़ को अपने,

हर लफ्ज़ को मैंने कांच के टुकड़ों पर पाया है,


मेरी ख़ामोशियों को मोहलत चंद लम्हों की जो मिल जाए,

मैंने भी छुप छुप के अश्कों से समंदर बनाया है,


है तलब इस दिल में और कुछ ख़्वाहिशें भी ज़िंदा है,

प्रेम अनुराग के सिवा इस दिल में कुछ और न समाया है।


दिव्या G.

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