कुंभ

कुंभ

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Deepali sanotia
Deepali sanotia 24 Apr, 2025 | 0 mins read
#hindipoetry

कुंभ जीवन का भर भी ना पाता है

और इंसान बिना नहाए ही चला जाता है

यहाँ दिन गिनो तो कम लगते हैं

जीयो तो पीछे गम ठगते हैं

रातों में सपने सताते हैं

रोशनी में बैठ अपने भी ना भाते हैं

दौड़कर जाते हैं लोग कुंभ नहाने के लिए

ना जाने क्या है, उसे पाने के लिए

डुबकियाँ भी खूब लगाते हैं

पर वापस कोरे ही आते हैं

यहाँ मन रंग ही ना पाता हैं

किसी के जीवन में अगला कुंभ भी ना आता है

मन के कुंभ में जब पानी ही ना हो

दौड़ बेकार है

जब जीवन की सार्थक कहानी ही ना हो

दीपाली सनोटीया

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