लालच

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Dakshal Kumar Vyas
Dakshal Kumar Vyas 30 Mar, 2023 | 1 min read
Climate Unemployment City Village Morning World' Country Pollution Indian Student

चारोंओर भगदड़ मची है इंसान इंसान का भुखा :⁠' भूख और लालच है ही कुछ ऐसी भुख लगे और कुछ खाने को न हो वो जो दिखे उसे खाने की कोशिश और छीना झपटी और लालच वो भुख को भी मार देती है लालच , , लालच हां लालच ही तो था .... जिससे दुनिया कहां से कहां और क्या से क्या हो गई ....... हरी भरी दुनिया अब बड़े बड़े कंक्रीट के महलों से भर गई ये लालच .. ऊंट, घोड़े, बैल गाड़ी हुआ करती थी आज क्या नही है मिनटों में कहां से कहां पहुंचा जा सकता है ..... ये लालच। लालच के उदाहरण तो बहुत है हां लालच से फ़ायदा तो हुआ ही है पर आज तो आदमी आदमी को मार अपनी भुख मिटा रहा ...... दूर दूर तक सिर्फ ऊंची ऊंची इमारतें जितने लोग नहीं उतने तो वाहन है और .... वाहनों का धुंवा ,, OOO सांस लेना तो भूल ही गया। घुटन सी महसूस जो रही है। कही दूर जाने का मन है में निकल पड़ा शांति ढूंढने पर ,,,,,,,,,,, मेरा व्यस्त जीवन को छोड़ कैसे निकलू इतने दिनो से सुरज ओर रातों से चांद तारे तक नहीं देखे हैं।ये सब छोड़ो असमान देखें तो पकवाड़ा गुज़र गया ,,,,, OOO फिर सांस लेना भूल गया ऊ फफ हा ये सांस भी में आर्टिफिशियल ही ले रहा हूं खुली जगह पर जा कर तो बैठना ही नहीं होता है ... Hm नही मैं जहां रहता हूं वहा तो खुली जगह तो है ही नहीं। चलो अब तो निकलना ही है कुछ रुपए लिए कपड़े और मोबाइल चार्जर बैग में डाला फिर बैग वही छोड़ अकेला निकल गया पता नहीं कहां जा रहा हूं ..... शांति की तलाश करते करते कुछ दिन निकल गए पर चारों तरफ दौड़ती भागती दुनिया इसको उसकी तलाश और उसको पेसो की तलाश पर ये तलाश खत्म ही नहीं हो रहीं। हा मैं भी शांति की तलाश कर रहा हूं।

कहते हैं ढूंढने से भगवान भी मिल जाते है पर शांति क्यों नहीं ....... पी पो पो पो रात दिन सड़कों पर ये आवाज़ और जो सड़क किनारे घर बने हुए है उन के बाहर लोग नहीं है और आस पड़ोस के लोग बात क्यों नहीं कर रहे है। सड़कों के जाल में चला ओर चला पर सड़क , इमारत और व्यस्त लोगो के अलावा कुछ दिख नही रहा ........ फिर सड़क किनारे चलने वाली गाय, कुत्ते नही दिखे तो......,,, कहां गए हा कुत्ते रखना तो माना अब अमीर होने का सबूत है पर बाकी मवेशी कहा गए असमान में पंछी नही ज़मीन पर पेड़ नही हां कुछ लोग रूफ गार्डनिंग करते हैं,,, ये सब कहा गए कही पशुओं का लॉक डाउन तो नही हो गया ।

दो चार वर्ष पूर्व मेने तो सभी को देखा था फिर अब कहां........ , शायद जंगलों की और हो ,,, हां शांति भी उधर मिल सकती है मेने दो वर्ष पहले एक जंगल शहर से दूर देखा था वही चल पडा वहां पहाड़ नदी और बड़े बड़े पेड़ भी थे ओर वहां पहुंच कर देखा तो वो सब .......... ,

कहां गए ये तो जंगल तो हैं पर कंक्रीट का शेर तो है पर मानव रूप में पेड़ की जगह लाइट के खंबे लगे है जगनू की जगह एलईडी है रोशनी तो हर तरफ हाइपर आज क्यों मन उदास है। इन सब में कही मेरा सहियोग भी तो है

,,,,,,,,, एकदम से में बिस्तर से उठा पानी पीया और एक पल रुका ये सपना था हां सपना था। बाहर से आवाज़ आ रही थीं खिड़की से देखा मेरे घर के आगे पेड़ जो की काफी विशाल है उसे काट रहे हैं और पापा के हाथो में पैसे है मेने नीचे जाकर पूछा तो पता चला की बिजली का खंबा लगाना है और वही लगाना है पहले पापा ने मना किया था पर रुपया अच्छे अच्छों को बदल देता है और क्या था पापा मान गए। और मुझे बोला गाय तेरे जूते लेने चलेंगे तो मैं भी बिक गया था।


धन्यवाद

दक्षल कुमार व्यास

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Dakshal Kumar Vyas

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