अंत

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Dakshal Kumar Vyas
Dakshal Kumar Vyas 02 Mar, 2022 | 0 mins read

दिन सारे गुजर गए राते बाकी रह गईं

मोसम सारे निकल गए पतझड़ आना रह गया

सुख सारे जी लिए दुःख जीना रह गया

अच्छाई का अंत आ गया बुराई चरम पर

धर्म सारा खत्म हुआ अधर्म का पर्चम बुलन्द हैं

देश प्रेमी शाहिद हुए देश द्रोही कायम हैं

युग अच्छे बीत गए कलयुग आधा रह गया

निर्माण हुए पूर्ण अब तबाही अभी रह गईं

परिवार सारे बिखर गए युवाओं की स्वतंत्रता अभी बाकी

इंसानों का राज़ खत्म हुआ मशीन अभी बाकी हैं

अंधेरा चारो और हुआ सिंधु में किरण बाकी हैं।


दक्षल कुमार व्यास


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Dakshal Kumar Vyas

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