ताश के पत्ते

लघुकथा

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Bhubaneswar Chaurasiya
Bhubaneswar Chaurasiya 31 May, 2020 | 1 min read

ताश के पत्ते

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'घर' में कोई ताला नहीं लगा था, बस लाॅकडाउन में बिमारी के डर से लोग अपने अपने घरों में बंद थे।


बंद का शिकार हमारे पड़ोसी 'घनश्याम अंकल' भी थे।

उन्हें ताश के पत्तों से बड़ा लगाव था। अपने बुजुर्ग मित्रों के साथ गांव के स्कूल वाले चौबूतरे पर अक्सर खेलते हुए दिख जाते थे।


आज चौबूतरा एक दम शांत पड़ा था वहां कोई ताश खेलते नहीं दिख रहा था।

मैं उधर से निकल रहा था तभी घर के चौबूतरे पर घनश्याम अंकल चुपचाप बैठे हुए दिख गए।

मैने कहा-क्या हुआ अंकल, आप इतने उदास क्यों हैं?

नहीं बेटा ऐसी कोई बात नहीं है; लेकिन उनके हाव भाव से मुझे लगा वे सचमुच दुःखी हैं।


उनके पास जाकर मैं भी चुपचाप बैठ गया कुछ देर बाद कुछ बोलने बताने के लिए वे अपना मुंह खोल दिए। तुम तो जानते हो उम्र ज्यादा हो गई है! कोई काम धंधा सधता नहीं है। मजबूरी में समय बिताने के लिए ताश खेलता था वह भी इस लाॅकडाउन में छूट गई।"


"समय बिताने के लिए घर के लोगों से कितना मन बहलाएं ।

मैंने कहा-बस इतनी सी बात है, मैं आपके चेहरे पर खुशी अभी ला देता हूॅं‌ । "क्या आपके पास एंड्रायड फोन है? वे बोले हां है क्यों नहीं लेकिन मुझे फेसबुक, ह्वाट्सएप पर मन नहीं लगता।


मैने कहा-कोई बात नहीं है अंकल, इस मोबाइल में फेसबुक ह्वाट्सएप से भी अलग दुनिया है लाइये फोन मुझे दिजिए।

"फटाफट ताश का अप्लिकेशन लोड किया और ओपन करते हुए ताश के पत्ते मोबाइल स्क्रीन पर खोल दिए!

उनके खुशी का ठिकाना नहीं था। "अंकल मोबाइल में ताश के पत्तों को देखकर बहुत खुश हुए।"


"ढ़ेर सारा आशीर्वाद देते बोले चाय पीयोगे। मैंने हां कर दिया कुछ देर बाद चाय आ गई।"

"अंकल अब चाय पीते हुए ताश खेलने में व्यस्त थे।

ऐसा लग रहा था अंकल' कई दिनों का ताश का कोटा आज ही पूरा कर लेंगे।"


मैं उन्हें खुश देखकर मोबाइल वाले ताश के पत्तों का महत्व समझाने की गरज से कहा-अंकल मोबाइल में जो ताश के पत्ता खेलते हैं तो हारने का खतरा नहीं होता।

अंकल हंसते हुए बोले वो कैसे? 


मैंने कहा- देखिए मोबाइल वाले ताश की पत्तियों को खेलने के लिए एक तो पत्ते नहीं भांजने पड़ते, दूसरा खेलने के लिए चार आदमियों की आवश्यकता नहीं रहती, तीसरे हारने का कोई खतरा नहीं रहता, चुकी एक आदमी खेलता है तो हारे या जीते कौन देखता है।

अंकल पुनः खिलखिलाकर हंस दिए।"


बात खत्म हो गई थी और चाय भी, अंकल जी से विदा लेने का वक्त हो गया तो मैं चलने को हुआ तो बोले मेरे चेहरे पर खुशी लाने के लिए तुम्हारा धन्यवाद।


©भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"

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