तुम्हें ढूँढती हूँ

तुम्हें ढूँढती हूँ

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 13 Dec, 2020 | 1 min read
Prem Bajaj

हल्की करवट पर नींद खुलते ही 

तुम्हारे वादों का मौसम ढूँढती

नंगे पैर चाँद की सैर पर निकल जाती हूँ..

  

खामोश पगदंड़ीयो पर दर्द की खलाएं चुभती है 

एक झोंका नश्तर का सिने में उठता पहुँचा देता है

दुधिया रोशनी का नुक्ता लगाए बैठी रोशन रात के दामन में..

 

अश्कों से बोझिल आँखें लिए बैरागन सी मैं तलाशती हूँ तुम्हें 

मेले में जैसे कोई गुम हुआ बच्चा अपनी माँ को ढूँढता है..


मेरी अमावस का दर्द रात समझती नहीं आज उसका चाँद उसकी आगोश में है पूर्णिमा जो है..


कोई कहकशाँ मेरी जुस्तजू संवारती नहीं 

बौनी हसरतों की कोई हद नहीं 

लिपटी हूँ यादों के भँवर से.. 


कोई आकर पास बिठाकर पूछे तो सही पलकों की दहलीज़ पर कुछ चुभती बूँदें गिरा लूँ गर कोई पनाह दे।

#भावु

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