जला रही है ज़िंदगी

ज़िंदगी की तान

Originally published in hi
Reactions 0
409
Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 15 Oct, 2020 | 0 mins read
Prem Bajaj

समय के समुन्दर में बूँद सी बह रही ज़िंदगी थपका रही है जोर से द्वार मौत के नग्में सुनाती इंसान की उम्र की दहलीज़ पर।


हर पल यहाँ युद्ध है जठराग्नि की ज्वाला से जूझते गरलमय जीवन रथ चलता है विषैली तान सुनाते।


फैल रही है लपटे हर आवरण जलाते ज़िंदगी पड़ी है सत्य की खोज में झूठ का राग दोहराते।


झनझना उठती है मन की शिराएँ किचड़ नयन में भरे द्वेष का हर कोई अपना अमोघ ज्ञान सुनाएं।


क्रोध लड़ता है उबलते काल संग बह रही ज़िंदगी से छीनने चंद्रवदन से मादक लम्हों को समेटने।


इंसानी जिह्वा कैसे संभले बलशाली तूफाँ अपनी और खिंचे साहस के बल कश्ती खेने जीवन उत्ताल से खेलें।

(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु

0 likes

Published By

Bhavna Thaker

bhavnathaker

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.