समय के समुन्दर में बूँद सी बह रही ज़िंदगी थपका रही है जोर से द्वार मौत के नग्में सुनाती इंसान की उम्र की दहलीज़ पर।
हर पल यहाँ युद्ध है जठराग्नि की ज्वाला से जूझते गरलमय जीवन रथ चलता है विषैली तान सुनाते।
फैल रही है लपटे हर आवरण जलाते ज़िंदगी पड़ी है सत्य की खोज में झूठ का राग दोहराते।
झनझना उठती है मन की शिराएँ किचड़ नयन में भरे द्वेष का हर कोई अपना अमोघ ज्ञान सुनाएं।
क्रोध लड़ता है उबलते काल संग बह रही ज़िंदगी से छीनने चंद्रवदन से मादक लम्हों को समेटने।
इंसानी जिह्वा कैसे संभले बलशाली तूफाँ अपनी और खिंचे साहस के बल कश्ती खेने जीवन उत्ताल से खेलें।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु
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