आसमान की गोद में खेलते चाँद का झिलमिलाना तुम्हारे रुख़सार की याद दे गया..
बिखरी लटों वाली लड़की चाँदनी में नहाते तुम जब झांकती थी झील में, नखशिख स्वप्न परी सी लगती थी..
सागर की लहरों पर गिरती चाँदनी की बूँदों से उठता है एक साया हूबहू चाँदनी का प्रतिबिंब है तुम्हारी काया, मैं छूने को दौड़ता हूँ तुम क्यूँ ओझल हो जाती हो..
पसीजती थी तुम्हारी हथेलियां मेरे हाथों की गर्मी में घुलकर उस लम्हें की याद दिलाती है तन्हा रातों की खामोशी..
कह दो अपनी यादों से थम जाए ख़्वाब बैठा है मेरी पलकों पर, तसव्वुर से उतर कर मेरे ख़्वाबगाह में बस जा खुद के भीतर तुझे महसूस करूँ तो ज़रा नींद आए..
हंगामा न कर कुमुदिनी यूँ कल्पनाओं की क्षितिज पर बैठे, चाँदनी रात में तड़पते कोई खता न हमसे हो जाए..
यकीन करो इश्क है बेइन्तहाँ तुमसे फासलों पर दिल दहलता है
चाँदनी रात में तुम्हारी याद आते ही आशिक के चैनों करार का जनाज़ा निकलता है।
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर
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