मेरी सोच का शृंगार

मेरी सोच का शृंगार

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 08 Dec, 2020 | 1 min read
Prem Bajaj

"मेरी सोच के शृंगार का नुक्ता तुम"

चाँद की तलब किसे है, तेरी हंसी मेरे दोनों जहाँ कहाँ सीढ़ी कोई आसमान तक पहुँचेगी, मेरी खुशियों का वितान तेरा माहताब ही तो है। 


सपनो की सेज पर खुशबू बसी तेरे जिस्म से बहती संदली फ़ज़ाँ की, आईना हूँ तेरा मत आज़मा मुझे, त्वचा की परतों में तुम्हारे नाम की नमी ही तो है।


कहाँ कुछ और लिखना आता है मुझे, 

सच बोलूँ ये जो मज़मून लिखती है मेरी कलम की नोक, सारे तुम्हारी अदाओं का प्रतिबिम्ब ही तो है।


चिंगारी सी प्रीत मेरी तेरी चाहत है हवा सी, इश्क की आग में चलो चुम्बन का तेल सिंचे, क्यूँ न लबों को सुराही समझे प्यार नशा ही तो है। 


मिला दे मुझमें खुद को मुझे अपनी लत बना ले, गुम हो जाए कुछ यूँ की दुनिया को दिखाई ना दे जिस्म दो सही पर जान एक ही तो है।

(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु

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