अच्छे समय को दावत दो

अच्छे समय को दावत

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 16 Dec, 2020 | 1 min read
Prem Bajaj

कुछ पंख कटी चिड़ीयों का आह्वान स्वीकार करो आधिपत्य के अधिष्ठाताओं मुक्त गगन की खिड़की को आधी तो खोल दो।


कुछ आँखें तमस घिरी ज़िंदगी को सहते अंधी हो चुकी है, छोटे से कमरे के किसी एक कोने में रोशन ऊर्जा का संचार भर दो।


मुरझा रही है अपने ही बाग में कलियाँ कुछ कातिल भँवरे के तीखी नज़रों से

रक्षता मासूम को पनाह में लेकर ऐसा महफ़ूज़ कोई वितान तो दो।


सीमा लाँघ रही है वहशीपन की कहानीयाँ देकर पूर्णता अंत सुखद भर ऐसा कोई मोड़ तो दो।

 

ये कैसी आग है जो बुझती ही नहीं मसली ही जाती है मोम सी गुड़िया ठंडी अब राख हो ऐसा कोई आबशार तो दो।


बह रही है पन्नों से बू विमर्श की छंटे शब्दों का जाल और आज़ादी का गीत बहे ऐसे सुंदर समय को कोई दावत तो दो।

#भावु

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