रहम करो

रहम करो

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 08 Dec, 2020 | 1 min read
Prem Bajaj

खिंचती चली जाती है रूह तुम्हारे सुनहरे गेसूओं की गुत्थियों में उलझते बंदे के खस्त हाल पर कुछ तो रहम करो शहज़ादी।


चाँदनी का नूर लिए अजन्ता की मूरत सी तुम होठों पर गीली शबनम भरे यूँ ना तको दिल की अंजुमन में आग उठती है।


मीर की गज़ल सी तुम्हें दिन भर गुनगुनाते लब महक उठते है, आफ़ताब की कसीदाकारी से सजे हुश्न पर हया की शौख़ी मार डालेगी।


उनींदी आँखों में अक्स भरे शराब का देखती हो जब बहकते, तुम क्या जानों उस ख़ता का कहर, मिट जाता है दिल का नामों निशान।


आहिस्ता-आहिस्ता मुझमें यूँ ढ़ल रही हो जैसे धवल दूध में केसर का रंग, साझा करते मुझको खुद में बटोर रही हो।


करीब आओ मुझे कण कण में भर लो तुमसे दूरी पर दम निकले, अविरत बहती धड़क की तान पर तुम ही तुम बज रही हो।

#भावु

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