इश्क का आगाज़

इश्क का आगाज़ करते है

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Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 05 Oct, 2020 | 1 min read

(इश्क को आगाज़ दें)

तिमिर वन में झिलमिलाते रात ने एक वितान बुना, शेष पहर के आगमन में हल्के से झीने दुकूल का।

 

तारों ने बहती हवाओं से चुराकर लहरों की बाँसुरी, विरह की कुछ तान छेड़ कर 

शूल भरे यादों के बन में।

 

तिली जलाकर छोड़ दी तेरी स्निग्ध मुस्कान की खोज में, मैं चाँद का कंगन लाया हूँ तुम पहन कर हंस दो ज़रा।


इस हदय की विद्युत शिखा में श्वास तुम भर दो ज़रा, मुझ मूक प्रीत में व्यथा भरी, 

छीज रही संवेदना।


प्रणय लौ में अपने तन की संदल सी महक भर दो, मधुर विषाद की यामिनी में 

चलो कालिंदी घाट पर।

 

रजत स्वप्न की तान बुनकर सजल कर ले रूह को, प्रीत पथ पर झुलस रहे एहसास को स्नेह की रश्मियों के सुर दे।


जाम पिला कर स्वप्न को खुशियाँ चूम कर उर भरे, इस रात की कब से राह तकूँ

आगाज़ दे हम इश्क को।


बस जा मुझमें खून सी तू साँस-साँस महकने दे, लाँघ कर हर रवायतों को दो हथेलियों को जोड़ लें।।

(भावना ठाकर, बेंगलोर)

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