हिजाब मुक्त भारत ही एकता का निर्माण करेगा

हिजाब मुक्त भारत

Originally published in hi
Reactions 1
507
Bhavna Thaker
Bhavna Thaker 28 Feb, 2022 | 1 min read
Prem Bajaj


वैसे तो हम कहते है की परिवर्तन संसार का नियम है, हर चीज़ समय के चलते बदलती रहती है। चाहे विचार हो, चाहे फैशन हो या परंपरा, हमने विद्रोह की लाठी चलाते बहुत सारी कुप्रथाओं को बदल ड़ाला है। खासकर औरतों पर थोपी गई जबरदस्ती की रिवायतों में भरपूर परिवर्तन देखने को मिलता है। 

हिजाब पहनने की प्रथा भी दमनकारी और महिलाओं की समानता के लिए हानिकारक है। क्यूँ मुस्लिम महिलाएं इस थोपी गई प्रथा का सकारात्मक सोच के साथ बहिष्कार नहीं करती? 

स्कूल में हिजाब पहनकर आने की ज़िद्द सरासर गलत है, मुद्दा इतना बड़ा नहीं जितना खिंचा जा रहा है। भारत देश लोकतांत्रिक देश है आप कुछ भी पहनने के लिए आज़ाद हो। बुर्का, हिजाब, सलवार-कमीज, या फटी हुई जीन्स कहीं पर कुछ भी पहनिए किसीने कभी नहीं रोका, पर स्कूल और कालेज का एक अनुशासन होता है। स्कूली बच्चो के लिए यूनिफॉर्म बहुत जरूरी है। सभी की यूनिफॉर्म एक जैसे होती है तो बच्चो के अंदर हीन भावना जन्म नहीं लेती। सभी बच्चे जब यूनिफॉर्म में होते है तो यह पता नहीं चलता है की कौन अमीर का बेटा है कौन गरीब का। कौन हिन्दु, कौन मुसलमान सब एक समान लगते है। जिस स्कूल के जो नियम हो उसे हर छात्रों को मानकर चलना चाहिए। स्कूल में आप अपना मज़हबी पहनावा पहनकर आने की ज़िद्द नहीं कर सकते। बेशक हिजाब मुक्त भारत होना चाहिए। जिस तरह से राजा राम मोहन राय जैसे समाज सुधारकों ने पर्दा प्रथा का डटकर विरोध किया और कई महिलाओं को इस कुप्रथा से छुटकारा दिलवाया। वैसे ही हिजाब मुक्त भारत होना समय की मांग है।

क्यूँ अभी से धर्मं का चोला चढ़ाकर घुमना है आपको? माँ बाप के घर हो जब तक अपनी मनमानी से जी लो बाद में तो उम्र भर आपको उस घरेड़ का हिस्सा बनना ही है। तो ऐसे मुद्दों में न पड़ते स्कूली नियमों का पालन करों और शांति से पढ़ाई की ओर ध्यान दो।

वैसे भी घूँघट प्रथा, हिजाब, सती प्रथा, और विधवाओं के लिए नीति नियम ये सब किसी महिला की पसंद नहीं होती, परंपरा और संस्कृति के नाम पर जबरदस्ती थोपी गई रिवायतें है। हिजाब और भगवा स्कार्फ़ के विवाद पर एक नेता ने ट्वीट करके लिखा की लड़कियाँ बिकिनी पहनें, घूंघट पहनें, जींस पहनें या फिर हिजाब, यह महिलाओं का अधिकार है कि वह क्या पहनें।

इस मामले में हर कोई अपना पक्ष रखते आग को हवा देने की कोशिश कर रहा है। बिकनी और जीन्स चॉइस हो सकती है, बुरखा या हिजाब चाॅइस नहीं लड़कियों पर थोपी गई इस्लामिक रवायत मात्र है। क्यूँकि स्त्री को अमुक-तमूक परिस्थिति में बिकनी पहनकर घूमना चाहिए ये किसी धार्मिक या मज़हबी ग्रंथ में नहीं लिखा गया। पर कुछ एक परिस्थिति में मुस्लिम महिला को बुरखा पहनना चाहिए ये इस्लामिक मज़हब में लिखा है। दोनों की तुलना ही गलत है आज़ादी और पसंदगी की वैल्यूएशन एक ही पलड़े में मत तोलिए। फसाद किसी चौपाटी पर रंग रैलियां मनाने का नहीं है। विद्या की देवी सरस्वती के मंदिर में कैसे जाए उस पर है।

बिकनी किसी खास इवेंट या स्विमिंग का हिस्सा है। लेकिन बुरखा थोपा गया रिवाज़ है, तभी तो कुछ देशों में मुस्लिम महिलाएं इसका विरोध प्रदर्शन कर रही है। जैसे हिन्दु परंपरा में घूँघट प्रथा थोपी गई थी। मज़हब कोई भी हो किसीकी आज़ादी पर पाबंदी नहीं लगा सकता। आज ये जो हिजाब पर विवाद हो रहा है वो मात्र मज़हबी परंपरा की तरफ़दारी करते सांप्रदायिक सोच को भड़काने की कोशिश है।

और अगर बात मज़हब की ही है तो बेशक भारत हिन्दु राष्ट्र है तो ज़ाहिर सी बात है हर स्कूल, कालेज और कार्यालयों में जो नियम होते हैं वो हिन्दुत्व लक्षी ही होंगे, जिसे फ़ोलौ करना हर भारतीय का धर्म है। चाहे हिन्दु हो, मुस्लिम हो, शिख हो या ईसाई कोई भी हो। सनातन धर्म भारत की धरोहर है तो धर्म के नैतिक मूल्यों के हिसाब से भारत नखशिख हिजाब मुक्त होना चाहिए। एक बनों, एक देश, एक धर्म, एक भाषा और एक आवाज़ बनों, टोटली हिन्दुस्तानी।

भारत में अल्पसंख्यक जितने सुखी और खुशहाल है उतने शायद कुछ इस्लामिक देशों में भी नहीं होंगे। और देशों के मुकाबले तुलना करके देखिए, यहाँ की मुस्लिम महिलाओं की जीवनशैली बेहतर और सुरक्षित है। दुनिया भर में अफगान महिलाएं स्कूलों में तालिबान के नए हिजाब फरमान का सोशल मीडिया पर रंग-बिरंगे पारंपरिक पोशाक पहने अपनी तस्वीरें पोस्ट कर विरोध कर रही है। 

क्या गारंटी है की उपर से नीचे तक तन को ढ़क कर रखोगे तो ही अपनी हिफ़ाज़त कर पाओगे? जी नहीं दरिंदों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता, हिजाब चीरकर भी अपनी हवस पूरी कर लेंगे। अफगानिस्तान में तालिबान औरतों को तालों में बंद कर रहे है, उनकी नौकरियां छीन रहे है, उनका बलात्कार किया जा रहा है, हक की आवाज़ उठाने पर उनकी हत्या कर दी जा रही है। वहां औरतों के लिए किसी भी चीज़ से ज्यादा ज़रूरी इस वक्त ज़िंदा रह पाना है। क्या इनमें से एक भी अत्याचार आजतक भारत में अल्पसंख्यक महिलाओं के साथ हुआ? 

परंपराओं के नाम पर लादी गई गलत चीजों का विरोध करना चाहिए। जैसे तीन तलाक हटाकर महिलाओं को उनका हक दिलवाया, वैसे अगर घूँघट प्रथा की तरह हिजाब से भी छुटकारा दिलाना चाहे तो क्या गलत होगा। खुद के विकास के लिए ज़रूरी है कि हम अपने से बेहतर कर रहे लोगों को देखें और उनसे सीखें, खुद से पीछे चल रहे इंसान की तुलना में हम आगे है, इसका ये मतलब नहीं कि हम जहां है वहीं खड़े रहे। या उसका साथ देने के लिए पीछे की तरफ कदम बढ़ाएं, बल्कि हमें आगे बढ़ते हुए पीछे वाले को खींचने की कोशिश पर ज़ोर देना चाहिए। हिजाब का समर्थन नहीं विरोध करना सीखो। जो लड़कियाँ हिजाब को हटाने की मांग कर रही है वह अपना हक और अधिकार मांग रही है की हमें भी इस नखशिख लादी गई परंपरा से छुटकारा चाहिए। अपनी पसंद के सलिकेदार कपड़े पहनने का हक मांगो, इस देश में मुमकिन है।

"पसंद के कपड़े पहनने है" पाकिस्तान में ये बोलकर देखो। संसद में बराबर रिप्रेजेंटेशन चाहिए? मिडिल ईस्ट में जाकर देखो, वहां तो रेप का आरोप भी बिना पुरुष गवाह के औरत नहीं लगा सकती। भारत की मुस्लिम लड़कियों को कुछ कट्टरवादी भड़काने का काम कर रहे है, ये विवाद उसी का नतीजा है। बाकी अल्पसंख्यकों के लिए भारत जितना सुरक्षित और आराम से रह सके ऐसा और कोई देश नहीं।

हिजाब या घूँघट कोई गर्व लेने वाली बात नहीं है, महिलाओं के दमन का हिस्सा है। हर थोपी गई मान्यताओं का विरोध करते अपनी आज़ादी के लिए सर उठाना लाज़मी है, जो लड़कियाँ इस बात को समझ चुकी है वह विद्रोह की लाठी चला भी रही है। हिजाब को पसंद करने वाली लड़कियां बहुत कम होती है। कौन पसंद करता है 40/42 डिग्री गर्मियों में सर से पाँव तक ढ़के रहना। ये महज़ सदियों से चली आ रही परंपरा का अनुकरण है। इसीलिए पहले तय कर लीजिए की जिस चीज़ का आप विरोध कर रहे है वो आपकी पसंद है, या थोपी गई रिवायतें। बहकावे में न आकर अपनी सोच के आधार पर तय कीजिए की आप क्या चाहती है। 

बात यहाँ मज़हब की नहीं बात है महिलाओं के अधिकार की। हिन्दुत्व के नाम पर नहीं कुप्रथा को मज़हब का नाम देकर जो विवाद खड़ा किया है उस सोच से मुक्त होना चाहिए। धर्म के ठेकेदार और नेताओं के भड़काऊँ भाषणों से प्रभावित होते अपने लक्ष्य से मत भटकिए। अगर हिजाब मुक्त भारत होगा तो समझ लीजिए आपने एक पायदान आगे बढ़ते तरक्की की है। हिजाब न पहनकर भी आप मुस्लिम ही रहोगे आपकी पहचान मिट नहीं जाएगी। अगर समानता चाहिए तो परंपरा से परे रहो, कुप्रथाओं को अपनाने के लिए नहीं उसके विरूद्ध आवाज़ उठाओ। हिजाब मुक्त भारत का हिस्सा बनकर राष्ट्र प्रेम दिखाओ।

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर, कर्नाटक


भावना ठाकर 'भावु' (बेंगलोर, कर्नाटक)

1 likes

Published By

Bhavna Thaker

bhavnathaker

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 2 years ago last edited 2 years ago

    सार्थक आलेख

Please Login or Create a free account to comment.