वह बदहवास सा दौड़ा, एक साथ कई सीढ़ियां चढ़ हवा की तरह अपने कमरे में आ , झट से दरवाजा बंद कर जैसे ही मुड़ा .......तो सामने शीशे में उसका अक्स उसी को डरा गया.....
सामने खड़ा उसका वजूद उसी पर उंगली उठा रहा था " क्या किया तुमने? कहां से लाए इतनी वहशत ?"
खट की आवाज से खिड़की खुली और तेज हवा के झोंकों के साथ पानी की बौछार भी अंदर आ गई।
कुछ पानी की बूंदे अपने चेहरे पर महसूस कर उसका हाथ चेहरे पर गया तो लगा रक्त छु लिया .....
नन्ही सी कुसुम का चेहरा उस पल आंखों के आगे घुम गया, जो उसके आगे पीछे " भइया, भइया " की रट के साथ घूमती थी.......
" मैंने...... मैंने ......यह क्या कर दिया नीले फीते के नशे में वासना के आवेश में आकर ......... उसने मोबाइल नफ़रत से जमीन पर पटक दिया
" ओह! कोई समय को पीछे ले जाओ ....मुझे सब बदलना है.... " !
तभी सायरन के साथ पुलिस की जीप के रूकने की आवाज़ आई।
दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर खुद ही खुल गया
" हम शेखर तुम्हें कुसुम के बलात्कार व हत्या के इल्ज़ाम में गिरफ्तार करते हैं "
नीचे हाॅल से सिसकियों की आवाज ने उसे और पश्र्चतापसे भर दिया।
उसने अपना मुंह दोनों हाथों से छुपा लिया कैसे करेगा वह उनका सामना?
उसे देखते ही रोष में भरी चाची ने उसके गालों पर थप्पड़ों की बौछार कर दी " दूर हो जा पापी ! ..... मेरी नज़रों से .....कितने भरोसे से तुम्हें यहां पढ़ाने के लिए लाए थे ...... क्या पता था? कुसुम से हाथ धो बैठेंगे" कह वो फिर सिसकियों में डुब गई।
चाचा जी के पांव पर वह गिर पड़ा।
" नहीं ....नहीं.... मैं सब बदलना चाहता हूं मैंने कैसे यह दरिंदगी कि...... मुझे खुद ही नहीं पता ? मैंने क्या कर डाला? " वह फफक पड़ा।
चाचा जी शोक में डूबे रूंधे गले से भराई आवाज़ में बोले " बेटा समय का पंछी उड़ चला .....अब कुछ भी बदला नहीं जा सकता था " ।
स्वरचित व मौलिक
अवंती श्रीवास्तव
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
निःशब्द
धन्यवाद अनुज
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