पथ प्रशस्त कर

यह कविता खुद को बुलंद करने के बारे में है

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Avanti Srivastav
Avanti Srivastav 03 Oct, 2020 | 1 min read
Irony

चल पथ तुम प्रशस्त कर 

अब ढील तो रहने ही दे

अव्यवस्थाओं का अब 

मुंह बस नोंच ले।


क्या करें, कैसे करें

इस संशय को छोड़ दे

ठान ले निडर बन और

बलात्कारियों को ठोक दे।


 विनतियों और अर्जियों की 

अब बस उम्र गई

कानून, न्याय ,व्यवस्था के

 सभी प्रहरी खो गए।


आंख में पट्टी बांधे 

न्याय की देवी सो रही

भरकर अब हुंकार 

तु उसको जगा 


कर तांडव के खुल जाए

 तीसरा नेत्र शिव का


स्वरचित 

अवंती श्रीवास्तव

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