वादे से इरादे तक

वादे से इरादे तक

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ARUN SHUKLA Arjun
ARUN SHUKLA Arjun 09 Apr, 2021 | 1 min read



जनमानस है पूछ रहा अब, सत्ता के गलियारों से।

आखिर कैसे खेल गए ओ हाथ लिए तलवारों से?

लाल किला ही राज-मुकुट था, तोड़ दिया गद्दारों ने?

हिला दिया दिल्ली को कैसे फिर अशांति के नारों ने?



देशद्रोहियों का मकसद तो देश तोड़ने वाला था।

चेहरे पर तो बस नकाब था, अंतर्मन तो काला था।

भारत के न्यायालय पर भी उनको नहीं भरोसा था।

क्योंकि मन में षड्यंत्रों को पहले से ही पोसा था।

खुद की कथनी करनी में ही भेद किया मक्कारों ने!

हिला दिया दिल्ली को कैसे फिर अशांति के नारों ने?



देश नहीं झुकने दूंगा यह शपथ तुम्हीं ने खाई थी?

रामराज्य का स्वप्न दिखाकर, छेड़ी स्वयं लड़ाई थी।

लुटती रही आन भारत की हाथ बांध तू खड़ा रहा।

तेरे बल पौरुष के सम्मुख, कैसे दुश्मन अड़ा रहा?

फिर भी तेरी ही गाथा को छाप दिया अख़बारों ने,

हिला दिया दिल्ली को कैसे फिर अशांति के नारों ने?



तुम भी खेल जुए में शायद हार गया था माता को।

कैसे यह स्वीकार हो गया भारत भाग्य विधाता को?

चीर हरण हो गया दुबारा खड़ा दुशासन मुस्काया।

भारत मां की लाज बचाने कोई कृष्ण नहीं आया?

घर की गरिमा खुद ही देखो लूट लिया था यारों ने,

हिला दिया दिल्ली को कैसे फिर अशांति के नारों ने?



मै प्रहरी हूं सजग देश का‌ खुद को क्यों बतलाया था?

आखिर क्यों जनता ने तुमको चौकीदार बनाया था?

भारत का हर एक नागरिक, निष्फल तुम्हें बताएगा।

जो कलंक लग गया देश पर कभी नहीं मिट पाएगा।

राष्ट्रवाद की नई इबारत लिखा आज अंगारों ने,

हिला दिया दिल्ली को कैसे फिर अशांति के नारों ने?


कवि अरुण शुक्ल 'अर्जुन'

रत्यौरा प्रयागराज





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ARUN SHUKLA Arjun

arunshukla

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    सार्थक रचना

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    पोस्ट सबमिट करने वक्त इमेज सर्च का ऑपशन रहता है कृपया अखबार की कटिंग या अन्य प्लेटफार्म से संबंधित तस्वीर पोस्ट के साथ मत संलग्न कीजिए।सादर🙏

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