भाग्यरेख

मजदूर पिता और पुत्र के बीच एक भावुक संवाद करती मर्मस्पर्शी कविता

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 09 Sep, 2020 | 1 min read
#poetryblast

पुस्तक पढ़ते हुए बालक ने 

पूछा था पिता से 

' कर्म और भाग्य के बीच की दूरी कितनी?'

' कई राजमार्गों जितनी ' कहा था मजदूर पिता ने

देखा था मैंने, वो नम आँखों से

देख रहा था अपनी हथेलियों पर 

अंकित भाग्यरेख को

कि वह जानता था इन्हें मिटाने की कोशिश में

कभी कभी मिटना होता है स्वयं भी

यह करते हुए वह सहला रहा था

अपने हृदय को

जिसपर बंधे थे ज्यों के त्यों

राजमार्गों के किनारे मिलने वाले

कई मील के पत्थर !

©अर्चना आनंद भारती


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