खरी कमाई

बिटिया, हम गरीब लोग हैं, भला तुम जैसे बड़े लोगन को क्या दे पाएंगे? लेकिन बिना गुरुदक्षिणा दिए...

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 29 Jul, 2020 | 1 min read
#Inspiration

कामवाली आंटी उस दिन बहुत देर से आई थीं| माँ भुनभुना रही थीं क्योंकि उन्हें बाकी कामों के लिए भी देर हो रही थी| कामवाली आंटी आई तो सही पर साथ में दो छोटी छोटी बच्चियों को लेकर|


'ये कौन हैं' माँ ने पूछा|


'मेरी बेटियाँ हैं मैडम जी' आंटी ने कहा|


' पर ये रहेंगी तो तुम्हें काम करने में असुविधा नहीं होगी?माँ असमंजस में थीं|


' क्या करुँ मैडम जी,इनका बापू काम करने शहर चला गया, घर पर अकेली बच्चियों को छोड़ने का मन नहीं करता|


माँ ने उनकी मजबूरी समझ आगे कुछ नहीं कहा| वो बच्चियाँ सच में बहुत शांत थीं, आंटी के साथ मिल - जुलकर काम करतीं| मैं उस समय इंटर में थी लेकिन मुझे उनका काम करना नागवार गुजरता| माँ को भी उनका काम करना पसंद नहीं था पर समय काटने की मजबूरी थी|


आखिरकार माँ ने एक दिन उनसे पूछ ही लिया कि तुम इन्हें स्कूल क्यों नहीं भेजतीं?


' क्या करूँ दीदी, खर्चा इतना है '


' पर वहाँ तो दोपहर का भोजन भी देते हैं न? '


' अरे दीदी, सब कहने की बात है| भोजन ऐसा कि अगर खा लें तो बीमार पड़ जाएँ| इससे अच्छा तो कुछ काम - काज ही सीख लें| '


वो भी अपनी जगह सही थीं लेकिन उतनी छोटी बच्चियों को काम करते देख मुझे अच्छा नहीं लगता| मैं उनसे रोज थोड़ी थोड़ी बातचीत करती| धीरे धीरे बड़ी बेटी जिसका नाम पूरो था, मुझसे खुल गई| उसने बताया कि वह स्कूल जाना चाहती है लेकिन माँ जाने नहीं देतीं|



अब समस्या आंटी को लेकर थी| आखिर, उन्हें समझा बुझाकर मैंने बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए उन्हें मना लिया| और साथ ही ये भी तय किया कि मैं रोज उन्हें एक घंटे पढ़ा दिया करुंगी|


शुरू शुरू में तो घोर निराशा हाथ लगी लेकिन फिर उन्होंने पढ़ाई में रूचि लेना शुरू कर दिया| आखिरकार, बड़ी ने चौथी कक्षा और छोटी ने पहली कक्षा की परीक्षा दी| मैं बहुत नर्वस हो रही थी कि जाने उनका रिजल्ट क्या होगा लेकिन मेरी खुशी का ठिकाना न रहा जब उस दिन कामवाली आंटी अपनी दोनों बेटियों के साथ चहकती हुई आईं और बताया कि दोनों बच्चियाँ अच्छे अंकों से पास हो गई हैं|


मैंने देखा कि आंटी मुट्ठी में कुछ छुपा रही थीं|


'क्या छुपा रही हो आंटी?' मैंने पूछा|


' बिटिया हम गरीब लोग हैं, तुम बड़े लोगन को क्या दे पाएंगे? लेकिन बिना गुरुदक्षिणा दिए शिक्षा कैसे ले सकते हैं?' कहते हुए उन्होंने सकुचाते हुए मुट्ठी से एक मुड़ातुड़ा 50 का नोट निकाला और मुझे देने लगीं|


' मैंने कुछ पाने के लिए उन्हें नहीं पढ़ाया आंटी' मैंने भावुक होते हुए कहा|


' रख लो बिटिया आशीर्वाद समझकर, तुम बड़ी होकर खूब बड़ी अफसरनी बनना|' आंटी ने आँचल से अपने आँसू पोछते हुए कहा|


मैंने माँ को देखा, वो भी रो रही थीं| उनके इशारे पर मैंने नोट रख लिया| ये मेरे जीवन की पहली और खरी कमाई थी जो आज तक मैंने अपनी फाइल में सुरक्षित रखी है| जब भी इसे देखती हूँ मेरी आँखों में नमी और होठों पर मुस्कान तैर जाती है|

मौलिक एवंं सर्वाधिकार सुरक्षित

अर्चना आनंद भारती


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ARCHANA ANAND

archana2jhs

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    सुंदर रचना!!

  • Varsha Sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुन्दर

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