पाषाण

मनुष्य के पल पल बदलते भावों और स्वभाव की पड़ताल करती कविता

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 04 Feb, 2021 | 1 min read
#1000poems

ज्वालामुखी जब 

थक जाती है

अवसाद उड़ेलकर

पिघला लावा धीरे धीरे

घनीभूत होकर

जमा होकर कोरों पर

पाषाण का रूप ले लेता है

मन की पीड़ा भी

जब निकल नहीं पाती

समय पर

अवसाद ठोस आकार

धारण कर लेता है

धीरे धीरे शुष्क होकर

हृदय के पाषाण में 

परिवर्तित होने की

प्रक्रिया भी बिल्कुल

यही रही होगी !

©अर्चना आनंद भारती

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