कोई बता दे !

आज देखती हूँ हर राह, हर सड़क ,हर चौराहे पर प्रेम चिर शाश्वत प्रेम का यह रूप नहीं देखा था पहले ...अपरिमित प्रेम को परिभाषित करने की कोशिश करती कविता

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 01 Sep, 2020 | 1 min read
#poetryblast

तुमने कहा था मुझपर फबती हैं बसंती साड़ियाँ

सो मैंने घर भर लिया बसंती साड़ियों से

उस रंग से मुझे चिढ़ थी पहले

तुमने कहा तुम्हें जूड़े में सजे फूल पसंद हैं

मैंने सजा लिए फूल जूड़े में

मुझे छोटे बाल पसंद थे पहले

तुमने कहा था मैं रोती हुई अच्छी नहीं दिखती

मैंने दुखों को छुपा लिया हृदय के अतल गह्वर में

एक ही पगडंडी पर चलते हुए 

कब सब बदला,कुछ पता नहीं

कब मैं तुम जैसी होते होते 

तुम हो गई,कुछ पता नहीं

पर प्रेम की परंपरा कभी निभा न पाई

' प्रेम है तुमसे ' कभी कह न पाई

आज देखती हूँ हर राह, हर सड़क ,हर चौराहे पर प्रेम

चिर शाश्वत प्रेम का यह रूप न देखा था पहले

वो प्रेम जो मैं कभी कर नहीं पाई

पर तुम्हारी एक मुस्कान निहाल कर देती है

इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी किसी की हँसी पहले

अगर ये प्रेम नहीं तो क्या है प्रेम की परिभाषा

कोई बता दे...कोई बता दे पहले !

©अर्चना आनंद भारती


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