दुविधा

कवि सम्राट अज्ञेय की कालजयी रचनाओं को समर्पित मेरी यह कविता जिसमें है एक पाठक मन की दुविधा... पढ़ना न भूलें ??

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 02 Oct, 2020 | 1 min read
#an ode to the maestro

ओ कवि मेरे,बोलो लिखूं क्या

क्या कहूँ तुमने जो कहा नहीं है

मैं भला लाऊं कहाँ से भाव नूतन

क्या कहूँ जो हो अमिट, नश्वर ,सनातन


केशकंबली की साधना

या हरी घास की वेदना

या कहूँ कि बोलती है क्या

वह कलगी बाजरे की


पर नहीं, यह सब तुम्हारी है धरोहर

पर है बहता स्रोत कोई मेरे भीतर

हो रहा आतुर कि जैसे चाहता हो

फूटना ,बहना वो झरझर


संकुचित है मन ,है मुझसे पूछता सा

कैसे निकलें भाव मेरे,पीड़ा हृदय की

और कैसे पूर्ति हो भला उन रिक्तियों की


इस भरे घट की भला हो व्याख्या क्या

जो भरा है और रीता भी हुआ है

तो चलूँ, मैं भी लिखूँ कुछ 

करके क्षमायाचना तुमसे

कि बहुत कुछ अनकहा है

जो कि मुझपर बीता हुआ है !

©अर्चना आनंद भारती


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