चल ख़्वाब देखते हैं

मुख़्तसर सी ज़िंदगी के कुछ मुसल्सल ख़्वाब

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 09 Feb, 2021 | 0 mins read
#womens #1000poems



चल ख़्वाब देखते हैं एक ऐसे जहाँ की

जहाँ तेरी ज़ात और मेरी ज़ात में कोई फ़र्क न हो

रातों की रंगीनियां सिर्फ़ तुम्हारी न हों

चंद बेख़ौफ़ शामें हमारी भी हों

ये उफ़क फ़कत नीला न हो

ज़रा ज़रा सा गुलाबी भी हो

दरवाजे पर टंगी तख़्ती महज तेरी न हो

ज़रा सी मौजूदगी वहाँ मेरी भी हो

मेरी कोख में पलकर बेपनाह दर्द देकर

ज़मीं पर आई औलाद मेरे नाम से जानी जाए

ख़्वाब ज़रा नामुमकिन सा है

पर जाने भी दो,ख़्वाब ही तो है!

©अर्चना आनंद भारती


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