जूठे बेर

रमिया ने जूठे बेर तो नहीं जुटाए थे, हां! अपने दो बीघा खेत में उगाए मोटे धान से भात जरूर बनाया था।

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Ankita Bhargava
Ankita Bhargava 12 Aug, 2020 | 1 min read




  बरसों रमिया ने जिसकी राह तकी आज वह ख़ुद ही  उसके दरवाज़े तक आ गया था। वह चेहरे पर वही स्मित हास्य लिए था जो रमिया ने दशहरा मेले में रावण दहन के समय उसके मुख देखा था। अपने क्षेत्र के विधायक रघुनाथ के लिए रमिया ने जूठे बेर तो नहीं जुटाए थे, हां! अपने दो बीघा खेत में उगाए मोटे धान से भात जरूर बनाया था। अपने एल्युमिनियम के बर्तन भी उसने दो बार मांज लिए थ   मगर विधायक जी का भोजन और बर्तन तो उनका लवाज़मा साथ ही लाया था। रमिया को तो बस वह भोजन परोसना भर था। साबुन से हाथ धुलवा विधायक की पीए ने जैसे ही उसके हाथों में भात से भरा करछुल दिया कैमरों की फ्लैश लाइट चमक उठी।   "देखिए आज शबरी के घर राम आए हैं।" एक न्यूज़ चैनल की एंकर चीख रही थी और उसका चीखना सुन रमिया सोच रही थी, "क्या सच में शबरी के घर राम आए हैं!"

अंकिता भार्गव

 संगरिया / राजस्थान



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Ankita Bhargava

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Comments

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  • anil makariya · 3 years ago last edited 3 years ago

    बेहतरीन लघुकथा। गहरा तंज ।

  • Ankita Bhargava · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया सर

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    बेहतरीन लघुकथा

  • Ankita Bhargava · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया संदीप

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