खुशी

लड़का या लड़की में उनके लिए कोई फर्क नहीं था, पर अतीत में उनके अपने दिल पर लगे ज़ख्म अनायास ही आज फिर टीसने लगे थे।

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Ankita Bhargava
Ankita Bhargava 30 Jun, 2020 | 1 min read


        हरीश अपने घर के अहाते में बैचेनी से चहल कदमी कर रहे थे। उनका बेटा आज संतान सुख प्राप्ति की दहलीज़ पर खड़ा था। बेटा और पत्नी बहू को अस्पताल ले कर गए हुए थे, किसी भी समय खुशखबरी आ सकती थी। वे अधीरता से बेटे के फोन की प्रतीक्षा कर रहे थे। जानना चाहते थे उनके घर खुशी क्या रूप धर कर आएगी। न! लड़का या लड़की में उनके लिए कोई फर्क नहीं था, पर अतीत में उनके अपने दिल पर लगे ज़ख्म अनायास ही आज फिर टीसने लगे थे। बरसों पहले जब वह खुद यही सुख दूसरी बार अपनी झोली में बटोरने की तैयारी में थे तो पिताजी की एक रौबदार आवाज़ उनकी खुशी चकनाचूर कर गई। सोनोग्राफी की रिपोर्ट उनके हाथ में दे पिताजी ने कहा था, "हरीश! हमारा सर न कभी गैरों के सामने झुका है न झुकेगा। कल बहू को लेकर डॉक्टर के पास चले ज     हरीश बहुत चाह कर भी पिता का विरोध नहीं कर पाए। पत्नी का मूक विनय भी उन्हें हिम्मत न दे सका और वे उसे डॉक्टर के पास ले गए। कच्चा फल उस बार जो टूटा तो अपने साथ खुशी की आस के साथ साथ हरीश और उनकी पत्नी के मन का सुकून भी भी ले गया। जाने क्यों उन्हें लगने लगा था कि एक शाप उनके जीवन में ठहर गया है और अब खुशी उनके घर कभी नहीं आएगी।

      फ़ोन की घंटी से वे अपनी यादों से बाहर आए। "पापा आप दादू बन गए, बेटी हुई है।" बेटे की चहकती आवाज़ उनके कानों में मिश्री सी घोल गई। वे खुशी से झूम उठे, उन्होंने आकाश की ओर देखा, पूर्णिमा के चांद ने अपनी रश्मि से उन्हें नहला दिया। शाप मिट चुका था और उनके आंगन में खुशी की किलकारियां गूंजने को तैय

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Ankita Bhargava

ankitabhargava

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sushma Tiwari · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण रचना

  • एमके कागदाना · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत अच्छा लिखा है

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