कौन हूँ मैं?

स्वयं के बारे में बताना साहस और सत्यता का प्रतीक है। कवयित्री ने यही शब्दबद्ध किया है।

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 18 May, 2022 | 1 min read

स्वरचित कविता

शीर्षक- "कौन हूं मैं"


धरा पर मैं आई तो मां मुस्कुराई-

पापा से मुझको पप्पी दिलाई.

कहा- मेरी लाडो,मुनिया,परी,

जादू की झप्पी मुझे खूब भाई .


दादा जी रूठे,दादी चिल्लाई-

फूटी है किस्मत,तभी तो है आई,

मेरे पालकों ने संभाला मुझे-

फिर उनकी सुकन्या'अंजु' कहलाई.


चंचल सी चितवन और गोरा बदन-

नन्ही सी देवी को करते नमन,

सभी बावले से मुझे ताकते थे-

किसी ने न परखा मेरा यह मन.


*हूँ मैं कौन? कैसे बताऊं भला-

कहीं बनी वरदान,कहीं थी बला,

पापा ने साहस भरा मेरे मन में-

मां ने सिखाईं अनेकों कला.


मेरा रूप निखरा बनी शोख लड़की-

शबनम सी चमकी, शोले सी भड़की,

कलिका सी कोमल, विकट चंडिका सी-

हवा सी मैं लहराई, बिजली सी कड़की.


*मैं हूं अपने पापा की प्यारी परी-

विकट रास्ते पर कभी न डरी,

अम्मा के आंचल की लज्जा हूँ मैं-

भरोसे पर सबके मैं उतरी खरी.


पढ़-लिखकर मेरा बना है वजूद-

शिक्षण कला में ही आकंठ डूब,

*मैं हूँ एक नारी, फूलों की क्यारी-

यश-सुरभि फैली जमीं पर भी खूब.


किताबी यह चेहरा,दिल पर है पहरा-

भाव-हृदय है समंदर सा गहरा,

कर्मठ रही सदा,परहित में रत-

कहा जिसको अपना वही था लुटेरा.


वैसे है मेरा एक परिचय पत्र-

दिखाती रहूँ उसे मैं तो सर्वत्र,

जनम,उम्र,व्यवसाय,पक्का निशान-

बदलते रहें उसमें आगामी सत्र.


हंसमुख,हठीली,*कलमकार हूँ मैं-

सहजता से जन्मी *एक फनकार हूँ मैं,

नमकीन लोगों से नाता मेरा है-

शुगर की बीमारी की शिकार *हूँ मैं.


पाखी सी परवाज भरने की चाहत-

बिना पंख के,हो न जाऊं मैं आहत,

चारू,चपल मौज बनकर जो फिसलूं-

अल्हड़ नदी को किनारा दे लानत.


*मैं जैसी हूँ वैसी लगूं खुद को प्यारी-

समय-रथ पर बैठी करूं मैं सवारी,

करतार की मैं अनोखी कृति हूं-

कलम से है नाता,मैं तीखी कटारी.


मिथ्या मुखौटा लगाती नहीं हूँ-

छुपे राज सबको बताती नहीं हूं,

निरोगी है काया,न हावी है माया-

निर्णय करो सब! गलत या सही हूँ.


*मैं धरती पर बनकर धरित्री हूँ आई-

संयोग से फिर कवयित्री कहलाई,

गुरु बनकर मैंने संवारा है कल को-

सुगढ़-संतति की ही फसलें उगाईं.


मैं बेटी,पत्नी,मां,बहना मिलता है सम्मान-

घर की धुरी कहाती हूँ,मुझसे ही बढ़ती शान,

मुझमें 'मैं' का लेश नहीं है,बलिहारी मैं जाऊं-

भारत-भू पर खुद से मिलने फिर-फिर वापस आऊं.


  __________


 स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशितएवंअप्रसारित कविता

रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली

सर्वाधिकार सुरक्षित ©®

















































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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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