"कोहरा"

कोहरा शीत ऋतु का प्रतीक है.

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'
Dr. Anju Lata Singh 'Priyam' 15 Jan, 2024 | 1 min read

स्वरचित कविता

शीर्षक-"कोहरा"

धुंध से लिपटा है मौसम का चेहरा

सुबह जब उठें दिखे कोहरा ही कोहरा

दिल्ली की सर्दी का कहना ही क्या?

चलो आज करती हूं इसको बयां


यहां से वहां तक धुएं की सी चादर

दिखे न, न सूझे कुछ,चलना भी दूभर

सुबह के भ्रमण की भी छुट्टी हुई

 कांपे है तन सर्द मुट्ठी हुई


सूरज भी दुबका पड़ा है गगन में

निकलूं ,न निकलूं सोचे है मन में

लगे हैं कुहासे से पर्वत मनोहर

 पाखी छिपे बैठे मुस्काते कोटा


 

ओस-कणों से भीगी है धूप 

जाने कहां छिपकर बैठी है धूप

लजाई कमलिनी, ठिठुरा सरोवर

पारिजात पर लटके बीजों के झूमर


गरम अदरकी चाय देती गर्माहट

चतुर्दिक हुई वन में पतझड़ की आहट

मंथर गति वाहनों की सड़क पर

दुर्घटनाएं आ जातीं फिर भी सरककर


जालिम है मौसम अल्ला बचा लो

किरणें उतारो जमीं पर ,संभालो

भाए ना हमको अब कोहरे की चादर

मकर संक्रांति पर दे दो धरोहर


मौसम हंसी हो जाए हे राम!

सबको मोहब्बत का दे दो पैगाम,

जल्दी ही हो अब समां ये सुहाना-

थिरकें उमंगें,दिल हो दीवाना.


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रचनाकार-

डा. अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली

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Dr. Anju Lata Singh 'Priyam'

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