“कई गुरूवर हैं मेरे तो”

गुरु जीवन के आधारस्तंभ हैं.

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 377

स्वरचित कविता

शीर्षक-- "कई गुरुवर हैं मेरे"


शैशव से ही देखे मैंने, कई गुरुवर हैं मेरे तो

इधर-उधर जब चलूं डगर में, मुझको हरदम टेरें जो 

सबसे पहले गुरु रवि हैं,नमन करूं हर सुप्रभात में

दूजा गुरु नीर है पावन, हरदम रहता संग साथ में


सहना सिखा रही धरती मां,बाधाओं से न घबराऊं

अंबर के चंदा,तारों से, ज्योतित शीतलता नित पाऊं

फल से लदे तरु से सीखा,नम्र बनूं और झुक-झुक जाऊं

अहं न फटके पास कभी भी स्वाभिमानी मैं कहलाऊं


मां बाबा प्रेरक जीवन के, जन्म दिया धरती पर लाए

संस्कार की शिक्षा देकर ,मेरे नन्हें पर फैलाए

पढ़ने-लिखने पहुंचे शाला, मास्टर जी ने ज्ञान दिया

गुरु-शिष्य का मधुरिम नाता, अनुपम है यह जान लिया


विद्या के दाता हैं गुरूजन, प्रतिभाशाली और विद्वान

उनकी ही श्रमसाध्य तपस्या, निर्मित करती शिष्य महान

प्रेरक गुरु मिलें जब पथ पर, गहरा असर पड़े जीवन पर

अमित छाप छोड़ें वह अपनी, ले जाएं हमको मंजिल पर

  _________________________

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित एवंअप्रसारित कविता

रचयिता- डा. अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली

0 likes

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.