कविता:आदत

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 1 min read

हम झुकते हैं क्योंकि मुझे रिश्ते निभाने का शौक है;

वरना गलत तो हम कल भी नहीं थे और आज भी नहीं हैं।

   

किसी को तकलीफ देना मेरी आदत नहीं,

बिन बुलाया मेहमान बनना मेरी आदत नहीं,


मैं अपने गम में रहता हूँ नवाबों की तरह,

परायी खुशियों के पास जाना मेरी आदत नहीं।


सबको हँसता ही देखना चाहता हूँ मैं,

किसी को धोखे से भी रुलाना मेरी आदत नहीं।


बाँटना चाहता हूं तो बस प्यार और मोहब्बत,

यूँ नफरत फैलाना मेरी आदत नहीं।


जिंदगी मिट जाए किसी के खातिर गम नहीं,

कोई बददुआ दे मरने की यूँ जीना मेरी आदत नहीं।


सबसे दोस्त की हैसियत से बोल लेता हूँ,

किसी का दिल दु:खा दूँ, मेरी आदत नहीं।


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Aman G Mishra

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