कविता

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 767
Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 1 min read



कंचन जैसी प्यास है 

पर संध्या आज उदास है!!!


क्षितिज पर है सुर्य की लपट

सन्नाटे में है खटपट

स्मृतियाँ है विराम सी

शाम भी है गुमसुम सी

माझी की कश्ती डुब गयी 

अपने सारे खो गये 

ईसलिये.............. 

संध्या आज उदास है!!!!! 



स्वप्न क्रंदन कर गये

टिटहरी चिखती गयी

सिसक रही है हर घर में

मौत पर वो सिसकिया 

किसानों के घर में जैसे 

मौत ने मातमं किया

इसलिये...... 

संध्या आज उदास है!!!!!! 



दुल्हन फेरे लेके गयी

बाप अंदर से टुट गया

मोती सोया चुपचाप 

माँ आँसू में नहा गयी 

खबर न आयी बेटे की, हात को काम मिला की, नही

इसलिये..... 

संध्या आज उदास है!!!!! 



घर को सन्नाटा खा गया

गली में कोहरा छा गया

पत्ते सारे गीर गये,

 मौसम सारा बदल गया

धरती को कर दिया नंगा

लुट लिया सबने सबकुछ

वापस कुछ भी दिया नही

इसलिये.. ...... 

संध्या आज उदास है !!!!!!



पानी बिन मोेैते हो गयी

वृक्ष सारे कट गये

मौत का मातम छा गया

खोखला पृथ्वी को कर गये

भुंकप आया सारे मारे गये

इसलिये....... 

संध्या आज उदास है 


0 likes

Support Aman G Mishra

Please login to support the author.

Published By

Aman G Mishra

aman

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.