परसाई

हरिशंकर परसाई आज हरिशंकर परसाई जी की पुण्यतिथि पर उनको सादर नमन! हिंदी व्यंग्य की दुनिया में जब भी घुसा जायेगा, परसाई ही परसाई मिलेंगे। मैंने उनकी पहली रचना 'टेलीफोन' पढ़ी थी, जिसके बाद खुद मुझे व्यंग में काफी रूचि बढ़ गयी थी। उसके बाद मैंने उनके द्वारा लिखे गए कई व्यंग पढ़े। आज के साहित्य में वैसा व्यंग मिलना दूभर है, परसाई जी के व्यंग में खास बात ये थी कि वो तमाचा जिसे मारते थे, ताली भी वही बजाता था, बाद में पता चलता कि अरे! मेरी ही खिल्ली उड़ गई। उनके व्यंग्यात्मक निबंधों में सामाजिक बुराइयों पर कटाक्ष देखने को सहज ही मिल जाता है। परसाई जी हिंदी साहित्य जगत में व्यंग के लिए एक अमिट छाप हैं, उनके बिना व्यंग अधूरा है।

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 10 Aug, 2019 | 1 min read

हरिशंकर परसाई


आज हरिशंकर परसाई जी की पुण्यतिथि पर उनको सादर नमन! हिंदी व्यंग्य की दुनिया में जब भी घुसा जायेगा, परसाई ही परसाई मिलेंगे। मैंने उनकी पहली रचना 'टेलीफोन' पढ़ी थी, जिसके बाद खुद मुझे व्यंग में काफी रूचि बढ़ गयी थी। उसके बाद मैंने उनके द्वारा लिखे गए कई व्यंग पढ़े।

आज के साहित्य में वैसा व्यंग मिलना दूभर है, परसाई जी के व्यंग में खास बात ये थी कि वो तमाचा जिसे मारते थे, ताली भी वही बजाता था, बाद में पता चलता कि अरे! मेरी ही खिल्ली उड़ गई।


उनके व्यंग्यात्मक निबंधों में सामाजिक बुराइयों पर कटाक्ष देखने को सहज ही मिल जाता है। परसाई जी हिंदी साहित्य जगत में व्यंग के लिए एक अमिट छाप हैं, उनके बिना व्यंग अधूरा है।

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