एक कविता

कविता कवि का आईना होती है।

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 13 Jun, 2020 | 1 min read

राह ही रुक गयी,

मैं तो चलता रहा।

अँधेरा छाया रहा,

दिन निकलता रहा।


तेरे रुकने से, मैं भी न रुक जाऊंगा,

तुम कहीं जाओगी, मैं कहीं जाऊंगा।।


मैं तो चलता रहा,

राह अपनी मान के,

राह गैरों की थी,

ये पता ना रहा।


तुमपे जीता था मै, मुझपे मरती थी तुम,

मुझपे जी लो अगरचे, मैं मर जाऊंगा।।


रेत पर पांव था,

मैं फिसलता रहा।

वक्त का दांव था,

मैं विखरता रहा।


वक्त की चाल ग़र हम न समझे अभी,

तुम जहर खाओगी,मैं जहर खाऊंगा।


चाँद भी चांदनी से

संवरता रहा,

भँवर भी रागिनी पे

मचलता रहा।


एक पल का सही, हो भरोसा प्रिये,

तुम संवर जाओगी,मैं संवर जाऊंगा।।

©aman_g_mishra

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