घर...

हमारा प्यारा घर .....सबसे न्यारा घर । एक सीख ज़िन्दगी की ।

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Akhilesh  Upadhyay
Akhilesh Upadhyay 09 Aug, 2020 | 1 min read
#REALITY#

मानव समाज में व्याप्त परिशुद्घियां आज - कल परंपरागत परिपक्वता को और  भावनाओं को आहत कर रही हैं ...तथा इनसे जुड़े कुछ मुद्दों को अपास्त की श्रेणी में पूरी विश्लेषित कर रही है। 

बात कुछ ऐसे मसलों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना चाहती है जिसका मूल कहीं ना कहीं हर जगह विक्षिप्त रूप से विद्यमान है....

ऐसी ही परिस्थितियों में हमारा सहयोग देने वाला अगर कोई ना भी हो तो एक आश जगी रहती है । 

मेरा प्यारा घर ...जो शायद ! दुःख के माहौल में भी सुख का अनुभव कराने वाला ...एक मात्र ठहराव के समान मंज़िल तक ले जाने वाला सुलभ पथ प्रतीत होता है।।।

घर का अर्थ मात्र यह नहीं की कुछ ईंटों को जोड़कर सर छुपाने का एक आधार हो , 

अरे! यह तो वर्षों तक किया गया विश्वास रूपी तप से आंचमित संस्कार का प्रतीक होता है जिसे हम अपने जीवन के मूल अर्थ को समझ सकते है ।

मेरे लिए अपना घर एक फलित वृक्ष के समान सुकून देने वाला छाव के सदृश है, जिसके छत्रछाएं में रहकर हम स्वयं को भव - बाधाओं से मुक्त अंगीकार करते है ।

स्फुटित कुछ भाव अन्तर्मन को गदगद करने वाली होती है - 

गर्भ में होने पर ही मां के उदर में ही घर के परिभाषा से ज्ञात हुआ मैं ... ! एक नन्हा सा उदर जिसमें मैंने कुछ माह ही व्यतीत किया हो परंतु वही हमारा पहला घर था। 

मां का साथ रहा...अपनों का साथ रहा...बचपन बीती तो इसका मूल अर्थ ज्ञात हुआ जब कामकाज की तलाश में हम  घर से दूर हुए ।

घर मेरा घर एक स्वर्ग जहान ... जब दूर हुए अपनों से ।

सपना मेरा था आगे... मजबूर हुए हम खुद से ।।

सच कहा है किसी ने - घर तो घर होता है ,चाहे वो कुटिया हो या फिर एक स्वर्ण महल ।

एक लकड़हारा भी बारिश के मौसम में जंगल से भागकर अपने कुटिया में ही शरण लेता है ; भले ही बारिश की संपूर्ण अंश उसकी कुटिया को डुबो रही हो ...

चिड़ियों का रुदन सुना है मैंने !...कैसे वो अपने घोसलो से मधुर गान करते हुए आनंद के रस को परोसती है ।

कहते है -

भाव से भावना तक ,रोने से हसने तक ,प्यार से तकरार तक और संस्कार से उपकार तक सब कुछ हमने इसी प्यारे घर से सीखा ।


कुछ पंक्ति है विचार कीजिएगा - 

घर ना हो तो चिंतन जग में ...एक दिन खुद को पथ पर देखो ।

नाम हो भी बड़ा ,सब व्यर्थ कहे ...घर ना हो तो चिंतन जग में।

सब दीन कहे , सुध विसरत भी ...एक घर ही सबका मीत जग में।

नर हो ना निराश करो मन को कुछ व्यर्थ ना हो ...इस जन्नत में ।

घर ना हो तो चिंतन जग में...घर ना हो तो चिंतन जग में।।


हां ! शायद! मैं मजबूर हूं अपने इस स्वार्थ पूर्ण विचार से जो इस घर को छोड़कर कभी दूर नहीं जाना चाहूंगा।।।

मेरा प्यार घर ......मेरा प्यारा घर....जिसने मेरी इरादों को पंख दिया , जिससे मेरी अनगिनत यादें जुड़ी हुई है ।

घर ....घर...घर...मेरा प्यारा घर ।।।


धन्यवाद् ✍️✍️✍️ 


~Akhilesh upadhyay 

@_just_akhi_

@crux_of_akhil

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