मेरे सपने

सपनो का भी एक महल था

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udit jain
udit jain 18 Jun, 2020 | 1 min read
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सपने संजोता मै अपनी आंखो मे,

हर पल भरता तुझे सांसो मे,

कभी तो पूरे होने की आशा मे,

कांच की तरह टूट जाते सपने।।


दिन-रात पाने की आशा मे ,

हम पूरा दिन दौड़ है लगाते,

मन मार सो जाते हम,

फिर सपने आकर हमे जगाते।।


छोटे-छोटे सपने मेरे थे,

कब होगें वह अब पूरे,

कुछ को राह मिलती रहती,

कुछ किसी की आशाओ पर पलते।।


सोचा हाथ पकड़कर चलेंगे,

परिवार संग वो मुझे हर पल तोड़े,

इच्छाएँ मन मे रह गई अब,

मेरे सपने चकनाचूर हो गये।।


सपने टूटने की निराशा ने मुझे,

जीवन की परीक्षाओ को सिखाया,

तू एक फूल है मानव यहाँ,

ऐसे ही हमेशा टूटकर बिखरता रहेगा।।


-उदित जैन

@imuditjain

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