कुछ बात तुम्हें सुनाते है

पेपर विफ कविता प्रतियोगिता के लिए

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 05 Sep, 2020 | 1 min read
Humanity Social pressure Poetry Think for other Me to we Don't change yourself


नारीवाद का प्रश्न नहीं ये

ना ही समानता का सवाल है

अरे निश्चिन्त रहो चिंतित ना हो

नही ये कोई नया बवाल है

अधिकार कुछ हनन हुए तो क्या

ये अब ज़न ज़न का ही हाल है

बस दिनकर के किरणपुंज से

एक किरण उन्हें भी दिलाते हैं

चलो ना हाथ बढ़ा कर 

आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते हैं



स्वर जरा सा ऊँचा कर लो

कुछ ऊंचे कानो तक पहुंचाना है 

वो मनुष्य नहीं क्या? हक नहीं उनको 

क्यों कुछ पेटों को भूखे ही सो जाना हैं 

उनके कर्तव्यों की है सूची लंबी 

पर मूल अधिकारों से वंचित रह जाते हैं 

जो देख कर भी ये सब मुँह फ़ेर ले 

आश्चर्य मुझे वो रातों की नींद कहाँ से लाते हैं 

चलो ना हाथ बढ़ा कर 

आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते है 



वो जननी है, तो सृष्टि है 

पर देखो लोगों की कैसी दृष्टि है 

मातृत्व के ओर प्रथम पायदान पर 

वो उन दिनों के लिए अशुद्ध हो जाती है 

छुप छुप कर काग़ज में बाँध बाँध कर 

सरे आम शर्मिंदा हो साधन जुटाती है 

यदि निर्भीक होकर करे ना ऐसा 

तो निर्लज्ज भी कहलाती है 

अपनी उत्पत्ति का आधार भूल कर 

हैं लोग कौन जो ये नियम बनाते है 

चलो ना हाथ बढ़ा कर 

आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते है 



तुम क्या पहनोगे, वो क्या बोलेंगे? 

कोई मापदंड नहीं, वो नजरों से तोलेंगे 

तुम्हें कब आना है, कब जाना है 

ये सोचे, क्या इतने फुर्सत मे ज़माना है? 

वो चार लोग नहीं दुनिया सारी 

हम खुदको ही उनका डर दिखलाते है 

जो अदृश्य है कहीं दिखते नहीं है 

क्यों जीवन का अहम हिस्सा बन जाते है 

कहे सुने इन चार लोगों से 

क्यों ना अब आजादी पाते है 

चलो ना हाथ बढ़ा कर 

आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते हैं 



वो लड़की है तो हँस नहीं सकती 

वो लड़का है तो रो नहीं सकता 

भावनाओ पर जोर है किसका 

हम कौन है जो उन पर प्रतिबन्ध लगाते हैं 

समानता की सिर्फ बात है होती 

भेदभाव का बीज डाल, हम ही अन्तर बतलाते है 

अरे नया युग है, नया देश है, नव युवा को प्रशस्त करो 

बढ़ने के लिए मार्ग कोटि खुले है 

भेदभाव की बाधा को ध्वस्त करो 

प्रयत्न निष्ठ हो कर संसार शिखर पर 

देश को अपने पहुंचाते हैं 

चलो ना हाथ बढ़ा कर 

आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते है 



अतिरेक नहीं अतिउत्साह नहीं 

भावों का उद्वेग है ये, उद्दंड मेरा स्वभाव नहीं

वो अवमानना करके भी देखो 

सिक्कों से हिसाब चुकाते है

चलो अब आगे आओ 

ऐसों को सबक सिखाते है

हमारा शत्रु बस हमारा भय है 

हाँ अपने डर को भी सबक सिखाते हैं 

हम भूल गए हैं, वो हम ही हैं 

जो उस आधी आबादी में आते हैं 

चलो ना हाथ बढ़ा कर 

आधी आबादी को भी आगे बढ़ाते हैं 



©सुषमा तिवारी

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Sushma Tiwari

SushmaTiwari

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Babita Kushwaha · 3 years ago last edited 3 years ago

    क्या बात है।।।

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत खूबसूरत रचना दी

  • Avanti Srivastav · 3 years ago last edited 3 years ago

    बेहतरीन सखी

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    वाह, क्या खूब लिखा

  • Moumita Bagchi · 3 years ago last edited 3 years ago

    " अपनी उत्पत्ति का आधार भूलकर, है कौन यह नियम बनाते हैं?" बहुत उम्दा👌🏻👌🏻 बहुत बहुत बहुत अच्छी लगी आपकी कविता🥰🤩💕

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