विश्व पर्यावरण दिवस - एक दिन का त्यौहार?

विश्व पर्यावरण दिवस पर हल्का फुल्का व्यंगात्मक आलेख, उतना ही हल्का जितनी हल्की हमारी कोशिशे है पर्यावरण संरक्षण की।

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 06 Jun, 2021 | 1 min read
World environment day Save forests

दादू के हाथो में बरकत थी। क्या गजब बागीचे लगाए थे कि उनके जाने के बाद आज भी सब फल फूल से लदे पड़े रहते हैं वर्ना पापा बताते हैं कि अब तो लगता, लगा है भयंकर श्राप! यहाँ मिर्ची की क्यारियाँ लगाई नहीं की फलाने की बकरियां चर गईं। वैसे बकरियों का क्या कसूर चरने के लिए घास भी ना छोड़ी हमने विकास की आँधी में।

आँधी से याद आया कि ताकते - ताकते 'तौकते' तूफान तबाह कर गया लाखों पेड़, खैर वो वैसे भी हम काट ही डालते पर अचानक मैनेजमेंट गड़बड़ा गया। क्या है कि फिर इत्तु-इत्तु से पौधे लेकर वृक्षारोपण कार्यक्रम भी करना होता है नुकसान भरपाई के लिए। मतलब इतने बड़े - बड़े पेड़ काट कर 'एक के बदले दस' लगा भी दिए, बीज छींट भी दिए तो भाई वापस तैयार होने में समय लगेगा! अब हमारी मूंछें दाढ़ी थोड़े जो कल ही उग आयेंगी?

आयेंगी से याद आया कल अम्माजान से पार्सल आया। हमेशा की तरह खोलते ही दिमाग फिर झनझना गया। इतने बड़े डब्बे में इतना सारा कागज ठूंस रखा था, मतलब कई किलो। फिर ध्यान आया कि पहले जो प्लास्टिक ठूंस कर भेजते थे वो भी देखा नहीं जाता था और ये कागज सहा नहीं जाता। ऐसा लगता है मानो पेड़ों का कत्ल कर लाश हमे पार्सल भिजवा दी। खैर अब से झोला लेकर 'लोकल के लिए भोकल बनेंगे' ये प्रण लेकर हमने रीसाइक्लिंग वालों को कागज दे कर लाश ठिकाने लगा दी और सबूत मिटा दिए।

रीसाइक्लिंग से याद आया कि जब हम पढ़ते थे तो रीसाइकल किए हुए मोटे खुरदरे पन्नों पर कलम घस कर गणित में अपना दिमाग मजबूत करते थे। एक हमारी नई वाली जेनरेशन है इन्हें ' मॉल ' से आने वाली नोटबुक के बाईं ओर लिखने में फ्रेश फील नहीं होता है। खैर महामारी ने स्कूल बंद करा के कुछ नोटबुक की बचत कर ही दी है। हमार बचवा 'पेड़ बचाओ' आंदोलन का समर्थक शुरूए से है, एक काॅपी काली ना की। रीड्यूस, रियूज, रीसाइकल में से उसने रीड्यूस चुन लिया।


और अंत में याद आईं कुछ पँक्तियाँ जो पिछले साल लिखी थी, अब तो दिमाग में हड़ताल है.. काश कोई एस्मा एक्ट इसके लिए भी होता!


आप पढ़ीए


आज हम रो रहे हैं 

पर्यावरण साफ नहीं है 

पृथ्वी मर रही है और 

ये कत्ल माफ नहीं है 


जो भोजन आश्रय दे रहा है 

उसका अब यह हाल है 

कहते है माँ और मार रहे हैं 

इंसान हम भी कमाल है 


मरने वाले मासूम जानवरों

और पेड़ पौधों के लिए दुख है

संरक्षण तो करना ही होगा

इसमे ही भविष्य का सुख है


सारी बर्फ पिघलते ही फिर

डूब जाएगी यह संपूर्ण धरा

कैसे बचा सकते हैं समय रहते

आओ चले यह सोचें जरा


पौधे वृक्ष अनमोल है

चलो इन्हें आरक्षित करें 

पानी अमूल्य खजाना है

चलो इसे संरक्षित करें


अधिक पेड़ पौधे लगाए

धरती को चलो हरा बनाए

प्रदूषण को हम कम करे

चलो अपना भविष्य बचाए। 


और जाते जाते... 


हीरे की खान के लिए पेड़ काटने वालों सुन लो! 

एक दिन जब सारे पेड़ खत्म हो जाएंगे 

तो हम घुटती सांसो से हीरे चाट कर छुटकारा पाएंगे।


#worldenvironmentday


-सुषमा तिवारी


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