गुलिया का सावन

शादी के बाद का गुलिया का पहला सावन

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 16 Jul, 2020 | 1 min read
Shiv Rain Sawan Stories by Sushma Rural stories

छमक छमक चलती थी गुलिया। उससे ज्यादा उसकी पायल शोर मचाती थी। जब पैदा हुई तो आटे की लोई सी थी। मानो छू दो तो दूसरा आकार ले ले। माँ ने प्यार से गुड़िया नाम रखा था। फिर वो तूतला कर अपना नाम गुलिया बताती जो समय के साथ साथ गुलिया ही रह गया। माँ ने कभी पांव खाली नहीं रखे उसके। बस इसी वजह से गुलिया लुका छिपी भी नहीं खेल पाते क्योंकि पायल बजाती वो पकड़ी जाती।

शिव बाबा की विशेष कृपा थी उसपर। माँ हमेशा कहती की वैद्यनाथ धाम से मन्नत मे मांग कर लाई हूं तूझे। हाँ दादी जरूर चिढ़ जाती थी।

" लड़िका मंगने रहीनी, लईकी के ते प्रसादी मानी?"

दादी जो भी कहे पर माँ तो मानती थी, अब लड़का हो या लड़की मन्नत के बाद हुई है। गुलिया जैसे जैसे बड़ी होते गई शिव बाबा की भक्ति का रंग उस पर भी चढ़ते गया। बारह साल की थी तबसे माँ ने सोलह सोमवार भी करा दिये

" शिब जी खानी वर मिली बिटिया "

गुलिया तब शर्माती नहीं थी बल्कि खुश हो जाती थी। अब भला शिव प्राप्त करने की इच्छा किसे ना होगी? सावन शुरू होते ही गुलिया गांव के बीचो बीच बरगद के नीचे बने शिव मन्दिर दौड़ी जाती। दूध जल चढ़ा कर फिर वही बरगद की जटाओं को झुला बना खूब झूलती थी। पुजारी जी हमेशा डांटते

" ए गुलियवा, हाथ गोड़ टूट जाई त बियाहो ना होई.. भाग जो घरे "

पर गुलिया.. वो कहाँ डरने वाली थी।

" हमके कुछ नहीं होगा बाबा, हमार शिव बाबा दूल्हा है लच्छा करेंगे "

सब हँसते थे उसकी भोली बातों पर। पुजारी जी उसकी पायल की छम छम सुनकर ही आटे का हलवा का प्रसाद तैयार रखते थे। खुद खाती और कुछ घर ले जाती थी। 

" माई! शिव बाबा कब आएंगे ब्याहने?" 

सब खूब हँसते। दादी तो उसे शिव विवाह की कहानियां सुनाती की कैसे शिव जी की बारात में भूत प्रेत और जनावर आए थे। फिर कैसे पार्वती जी की मैया बेहोश हो गई थी। तेरी माई भी ऐसे ही रोयेगी फिर। गुलिया फिर चुप हो जाती क्योंकि माई को रुलाने का वो कैसे सोच सकती थी। 

धीरे धीरे गुलिया बड़ी होती गई। अब बुआ जब भी आती तो जन्मपत्रिका मांगती रहती। माँ का एक ही कहना था कि अब जो गाँव में स्कूल होकर लड़की दसवीं ना पढ़ी तो क्या फायदा। बुआ भुनभुनाती चली जाती थी। सयानी हुई गुलिया मानो पार्वती का रूप। लम्बा कद, गौर वर्ण, काले लंबे केश और शरीर जैसे किसी सांचे में ढला। शिव भजन गाती तो जैसे सरस्वती खुद गले में बैठ वीणा बजातीं हो। पाक कला में भी निपुण। आजू बाजू की लडकियों को अपनी अपनी माई से खुभसन का रोटी (लानत) मिलते रहता की गुलिया जैसे लच्छन क्यों नहीं है।

सावन की प्रदोष को जब गुलिया एक हजार एक बेल पत्र पर चंदन से नमः शिवाय लिखने बैठती तो दादी भी भावुक हो जाती थी। यही दुआ करती की इस बच्ची को अच्छा घर वर मिल जाए। गुलिया के और दो भाई थे। दोनों अपनी दीदीया के आगे पीछे डोलते रहते। दादी अब गुलिया को इसलिए भी मानती क्योंकि उसके पीछे जुड़वा भाई आए थे जो दादी के हिसाब से गुलिया का प्रताप ही था।

उस साल बुआ आई तो मानी ही नहीं। गुलिया की पत्रिका उठा ले गई।

" देखह गुलिया के माई, लड़िका पंद्रह जमात पढ़ कर मास्टर भईल बा.. गुलिया बहुत सुख करी "

गुलिया का भी दसवीं हो चुका था तो माई को कोई बहाना भी नहीं मिला। आगे पढ़ाने की बात बेकार थी क्योंकि तब ना व्यवस्था थी ना ही उतनी सुविधा का दौर। शिव बाबा का नाम लेकर गुलिया का विवाह महेश बाबू से तय हो गया। माँ ने ध्यान रखा की शादी के कार्ड पर नाम गुड़िया ही छपे वर्ना दामाद जी क्या सोचेंगे।

गुलिया की हल्दी की रस्म हो रही थी और उसकी मामी उसे छेड़ रही थी

" का गुलिया बन्नी! आप शिब जी का इन्तेज़ार नहीं कीं.. महेश बाबू के संगे ही तैयार हो गईं "

मामी के हँसी मज़ाक से गुलिया शर्म से लाल हो चली थी। धत् ये भी कोई बात है। शिव जी तो परम परमेश्वर है वो कहां आएंगे धरती पर हमको ब्याहने। समझदार हो चुकी गुलिया सब समझती थी पर शिव भक्ति में रत्ती भर की कमी नहीं आई कभी। दादी की कही बाते उसके दिमाग में दौड़ती, क्या हुआ अगर की बारात में भूत प्रेत सच्ची आ गए तो। माई का पता नहीं दादी जरूर बेहोश हो जाएगी। फिर खुद ही हंसने लगती।

गुलिया की बारात आई। श्याम वर्ण के महेश बाबू सच में बहुत सजीले लग रहे थे। व्यवहार की सौम्यता चेहरे पर भी झलक रही थी। खूब बढ़िया बढ़िया साड़ी गहने लाए थे। गुलिया सुहाग के जोड़े में पार्वती जी से कम नहीं लग रही थी। बिदाई के वक्त माई बहुत रोई। रो रो कर बेहोश भी हुई। ओह माई तो माई होती है पार्वती जी की हो या गुलिया की, कांच सा मन होता है। कलेजे का कोई टुकड़ा अलग कर दिया जाए तो क्या मूर्छित होने का हक भी नहीं भला? महेश बाबू माई को आश्वासन दिए कि गुलिया को कोई तकलीफ नहीं होगी और विदा करा लाए। दादी का मन था गौना रखने का पर महेश बाबू के यहां गौना सहता ही नहीं था।

नए घर में दुल्हीन गुड़िया का बहुत स्वागत हुआ। उसकी नंदो ने हथेली पर बिठा रखा था उसे। फिर वो समय भी आया जब गुलिया महेश बाबू के प्रेम में खुद को समर्पित कर चुकी थी। क्या जोड़ी थी उनकी! सब कहते जैसे शिव गौरा चले आ रहे है। देखते देखते जल्द ही गुलिया ने ससुराल में भी सब को अपनी निपुणता का कायल बना दिया। गुलिया भी फूले ना समाती जब लोग उसे मास्टराईन दुल्हन कहते थे। गर्व से फूल जाती थी और बुआ को मन ही मन धन्यवाद करती थी। महेश बाबू के कमरे में रखी किताबों वाली अलमारी साफ करते हुए गुलिया जब एक टक किताबों को देख रही थी तभी उन्होंने तय किया कि ये सारी किताबे वो गुलिया को पढ़ा देंगे। गुलिया बहुत खुश हुई। मास्टर जी अब अब उसके भी मास्टर थे और गुलिया बिना कॉलेज गए बहुत कुछ पढ़ने की तम्मना पूरी होने वाली थी। छह महीने हो गए शादी को और पहला सावन भी आ गया था। गुलिया का भाई हरियाली ले कर गुलिया को विदा कराने भी आ गया। ससुराल वालों का बिलकुल मन ना था पर माई का मन था कि पहला सावन तो मायके में ही होना चाहिए। गुलिया क्या कहती? सच तो यह था कि महेश बाबू के प्रेम पाश में बंधी गुलिया मायके को इतनी जल्दी धुँधला कर आई थी। भरे मन से महेश बाबू ने गुलिया को विदा कर दिया।

" चिट्ठी भेजना गुलिया " महेश बाबू चिल्लाए।

उनकी बहने हँस पड़ी। महीने भर को जा रही है, विदेश नहीं। गुलिया की आँखे भर आई थी। पर क्या करे माई ने मन्नत मांगी थी कि जो ब्याह अच्छे से हो गया था पूरे महीने बरगद वाले शिव बाबा को गुलिया अभिषेक करेगी। " ओह! हम शिव बाबा को कैसे बिसार दिए थे " .. पर महेश बाबू भी उसे शिव बाबा का प्रतिरूप लगते थे।

घर आई वापस तो जैसे पूरे टोले की हरियाली वापस आ गई। बढ़िया बढ़िया शिव गीत से घर गूंजने लगा था। गुलिया फिर छमक छमक कर जाती थी अभिषेक करने।

उस दिन डाकिया बाबू डाक दे गए। महेश बाबू का खत था। सब हँस रहे थे। हफ्ता ना हुआ इनके भोले बाबा उदास गए इनके बिना। गुलिया शर्माते हुए चिट्ठी लेकर बगीचे में दौड़ गई। कांपते हाथ और धड़कते दिल से चिट्ठी खोली 

" प्यारी गुलिया! 

आशा है तुम ठीक होगी.. याद तो आती होगी मेरी ना? या भूल गई। आज पूरे हफ्ते हो गए, तुमने कोई चिट्ठी भी नहीं भेजी तो मन बैठा जा रहा था। ये सावन का रूमानी मौसम और तुमसे दूरी काटने को दौड़ती है प्रिये! ईन बारिश की बूँदों को मेरे आंसू समझना, गरजते मेघ मेरे हृदय का विरह है.. खबर देती रहना। 


तुम्हारा महेश "


झरने से लोर आँखों के कोर से बह चली। मन तो था कि उड़ कर पहुंच जाये उनके पास पर माई की मन्नत का सवाल था। घर आई और कागज़ कलम निकाल तुरंत चिट्ठी लिखी। सोचा लिख दे अपने हृदय का विरह भी पर वो जानती थी तुरंत दौड़े चले आएंगे विदा कराने। गुलिया सोच रही थी कि स्त्री मन भी कितना अनोखा होता है। मायके की देहली से उतना ही प्यार जितना प्रिय मिलन की आस। पर चिट्ठी का जवाब तो देना ही था। उसने लिखा -

मेरे प्रिय! 

मुझे क्षमा करना

सावन में मुझे 

तेरा स्मरण नहीं आया 

गरजते श्याम मेघ 

शंखनाद से लगते हैं

बरसता निरंतर नीर 

जैसे अभिषेक को लालायित

उफनती नदियों का श्वेत फेन 

निर्मल दूध की तरह

पेड़ों पर हरे हरे पत्ते 

बिल्व होने की ललक

सौंधी भींगी मिट्टी से 

चंदन की खुशबु आती है 

पूरी प्रकृति ही जैसे 

स्वयं ही शिव को अर्पित 

वर्ष पूरा तूझे अर्पण प्रिय! 

मेरा सावन शिव को समर्पित।

-तुम्हारी ही "गुलिया"


जानती थी महेश बाबू दुखी होंगे पर उनको तो भादो में मना ही लूँगी। अभी तो शिव बाबा को मनाना है जिन्होंने महेश बाबू जैसा वर दिया था। आंगन में आई तो टोले की लड़किया नाच रही थी। 

" मेरे भोले बाबा को मनाऊँ कैसे 

पूरी मिठाई भोले के मन ही ना भावे 

भंग की गोली मैं लाऊँ कैसे..." 

ढोलकिया की थाप पर छमक छमक कर गुलिया भी भी खूब नाची फिर। 

©सुषमा तिवारी




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Sushma Tiwari

SushmaTiwari

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    मन ख़ुश हो गया इस कथा को पढ़कर

  • Sushma Tiwari · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया भाई

  • Namrata Pandey · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुंदर कहानी

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत प्यारी सी कहानी,देशज शब्दों का प्रयोग सोने पर सुहागा

  • Neha Srivastava · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुंदर रचना,💐💐

  • Sushma Tiwari · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया @Namrata जी

  • Sushma Tiwari · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया @Archana 💝

  • Sushma Tiwari · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया @Neha

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