परमानेंट चाबी (लघुकथा)

सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है।

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 18 Oct, 2020 | 0 mins read
Success Success lies with in


मन की बेचैनी तीव्रता से झुंझलाहट में परिवर्तित हो रही थी। एक तो दिमाग बंद पड़ा था ऊपर से यह दूसरा संकट।

"सुबह से होने वाली परेशानियाँ कम थी क्या कि घर की चाबी भी खो गई? अरे भाई थोड़ा जल्दी कर दे न!!"

चाबी वाले से दरवाजा जल्दी खोलने की मिन्नतें करते हुए ना चाहते हुए भी प्रकाशक महोदय का फोन उठा लिया।

" एक बार पुनः विचार करें आप..! शोहरत पाना रातों रात का खेल नहीं, उम्र कट जाती है। आप निश्चय ही बेहतरीन लिखते है, तभी मैंने यह सुनहरा अवसर आपके सामने रखा। एक मशहूर लेखक के नाम के साथ आपका लेखन, ज़रा सोचिए कितने पाठकों तक पहुंचेगा? जब पैसे हो जाए तो अपनी पुस्तक भी छपवा लीजियेगा।"

सपना तो मेरा प्रकाशित लेखक बनने का ही था किंतु साहित्य और लेखन में भी अब धांधली होने लगी है। घोस्ट राइटिंग.. उफ्फ! कैसी दुविधा है.. क्या करूँ?

प्रकाशक की कही बातें दिमाग पर काई बन कर जम रही थी कि चाबी वाला बोला

"भाई साहब.. मैं अपनी चाबी से खोल दूँ या फिर दूसरा रास्ता चुनेंगे जिसमें आप को थोड़ा धैर्य रखना होगा और थोड़ा खर्च ज्यादा होगा मगर परमानेंट चाबी बन जाएगी और परेशान नहीं होना पड़ेगा.. बोलिए?"


" ऐसा है श्रीमान! पुस्तक तो मेरे नाम से ही छपेगी, चाहे वक्त जितना लगे। वो क्या है ना अपने किस्मत के ताले पर किस और की चाबियाँ ज्यादा दिन नहीं चल सकती, मेहनत के सांचे में ढाल कर खुद ही बनानी पड़ती है।"

अब दिमाग और घर का दरवाजा, दोनों के ताले खोलने का रास्ता साफ हो चुका था।

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