बॉम्बे नंबर 17

मैं वहाँ नहीं रहता हूं पर वह मेरे अन्दर से जाता ही नहीं

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 12 Jul, 2020 | 1 min read
Slum Stories by Sushma Crime Life in dharavi

बॉम्बे नंबर 17


चेकदार कमीज पहने और हाथ में प्लास्टिक बोरे से बना बैग लेकर वह जैसे ही सन्नी होटल की बाजू वाली गली से बाहर आया चारो तरफ से छह-छह बिना वर्दी वालों ने उसके कनपटी पर घोड़ा तान दिया। डाल कर ले गए सफेद गाड़ी में। घात लगा कर बैठे थे और पक्का यक़ीन है इसकी टीप हीरो ने ही दी थी। मेरे दुकान पर आकर यह पूरा सीन बता रहा था पापा का मुँहलगा भटेला जो लोकल दुकानों तक हमारा माल पहुंचाता था। 

" वो तुम्हारा भाई था पंडित " उसने बात खत्म की। 

पापा ने मेरे तरफ घूर कर देखा। 

" राजा कब आया गाँव से, तूझे बोला था बताने को?" 

बस इसलिये नहीं पसंद यह जगह मुझे। शांति से एक दिन कोई नहीं रहता। यह है बॉम्बे नंबर 17। मैं यहां नहीं रहता हूं पर यह मेरे अंदर से जाता ही नहीं है। पापा हमेशा कहते की तुम क्या जानो कितने सपनों को पंख दिए है धारावी ने, यह बड़ा छोटा का भेद नहीं करता है सब को शरण देता है। यहां सबको रोटी ले कर आती है। मुझे कभी समझ नहीं आया था। बदबूदार गलियों और किच-किच के बीच कौन सा ख्वाब पूरा करने लोग दौड़े चले आते हैं पर रोज बढ़ती भीड़ पापा की बात को सच करते जा रही थी। पापा की बात पर ना यकीन करने के लिए मुझे कुछ ठोस मिलता ही नहीं था। उसपर रोज की चार बाते सुनकर मेरा दिमाग सुबह-सुबह खराब हो चलता था। मैंने कबका छोड़ दिया था धारावी, पूरी तरह से नहीं बस मेरे रोजी रोटी की जगह अब उन गलियों से होकर नहीं जाती थी। हालांकि पापा से सुनना पड़ता था कि ज्यादा महंगी जगह पर कम पैसे बना कर भला मैं कौन सी चतुराई दिखाता हूं। पापा को भरोसा था सालो से चले आ रहे धारावी पर उनकी पकड़ को मैं बनाए रखूँगा। पर शायद उन्होंने कच्ची धारावी में कदम रखा था जो अब पक चुकी है। और पक चुका था मैं भी, नहीं जानना था मुझे और करीब से उन गलियों को। 


      सत्रह साल की उम्र में पापा आए तो हाथ में एक ढेला नहीं था। उस्मान चाचा ने चौकीदारी में लगवा दिया तो था पर पापा को ढंग का काम चाहिए था। जात को नाम देने की परंपरा के तहत पापा पंडित कहलाए। उनको अपना धंधा चालू करना था। उस्मान चाचा के परिवार ने बहुत किया था हमारे लिए। दंगों के समय भी आगे बढ़कर ख्याल रखा की पापा की दुकान को कोई हाथ ना लगाए। उस्मान चाचा भी जानते थे कि जाने कितने जुगाड़ और कई रातों की नींद कुर्बान कर पापा ने अपना किराने का धंधा खड़ा किया था और उन्हें जान से ज्यादा अपने काम से प्यार रहा था। 

उन दिनों सफेद केरोसिन बेचने का काम किसी के पास नहीं था। हमने जुगाड़ लेकर वह काम ले तो लिया था पर इलाके में कई विरोधी खड़े हो गए थे। ग्राहक ने दूसरे किराने दुकानों को साफ बोला "अपन लोग को जिधर घासलेट मिलेगा उधर इच माल भराएगा "। काफी था कई दुश्मन खड़ा करने के लिए। मैं अब मार काट मे नहीं पड़ना चाहता था, उस पर पापा की दलील की तूझे मदद नहीं करनी तो गांव से राजा को बुलवा दे। वहाँ खेतों में अब क्या उगता है। यहां आकर धंधे में हाथ बंटाए। राजा चाचा से पापा की कुछ खास जमती नहीं थी। हाँ मुझसे ढंग से बात करते थे। मेरे कहने पर चाचा ने साफ कह दिया था

" देख तेरे पापा के संग मेरा आकड़ा बैठता नहीं तो धंधा क्या साथ करूंगा.. मैं गरीब भला, देता है तो बोल भाई को रोकड़ा हाथ में दे तो मैं वापस आकर अपना अलग धंधा बनाऊँगा "

राजा चाचा पहले पापा के साथ ही काम करते थे पर उनकी इधर उधर करने की आदत ने पापा को नाराज किया था। पापा का उसूल सिर्फ मेहनत और मेहनत। पर गली के लोगों को ऐसा नहीं लगता था। उन्हें साफ यकीन था यह किसी मंत्र तंत्र का कमाल है जो पंडित जानता है वर्ना बिना गलत काम में हाथ डाले इतनी बरकत? उसमें सोने पर सुहागा तब हुआ जब गली में आग लगी और एक लाइन से कई दुकान - मकान जल कर खाक हो गए पर आग हमारी दुकान के पास आकर बुझ गई। उन्हीं अफवाह उड़ाने वाले लोगों की बातों में आकर चाचा भी गांव वापस चले गए थे। 

अब जाने कब राजा चाचा गांव से आ गए थे और पता नहीं किस चक्कर में फंस चुके थे।

भटेला ने जिस हीरो के बारे में बताया था उसे सब जानते थे। खबरी था वह। खुद सारे गलत धंधे करता और संरक्षण के लिए दूसरों की टीप देता था। घासलेट के चक्कर में वैसे ही दुश्मन बने हुए थे क्या मालूम उन में से किसी ने? पर सब जानते थे कि पापा चाचा की अब नहीं जमती फिर?

 खैर! पापा के कहने पर भटेला के साथ मैं यहाँ वहाँ चौकी चौकी दौड़ा पर कहीं कुछ पता ना चला। थक हार कर हीरो को ही पूछा। थोड़ी देर इंकार के बाद मेरी एक भद्दी सी गाली देते ही उसने बता दिया कि 

"नारकोटिक्स वाले उठाए तेरे चाचा को। शाणा बनता है.. आते ही मेरे ही धंधे में सेंध मार रहा था। अभी तुम लोग दूर रहो नहीं तो फँसेगें तुम लोग भीं।" 

ड्रग्स! माथे पर पसीने की कई पर्तें तैर गई। पर मिलकर पता तो करना ही था कि किसने उनको बोला यह सब करने को? वह आए कब और पूरा माजरा जानना जरूरी था। 

मैं और भटेला किसी तरह पता करके नारकोटिक्स चौकी पहुंचे। साधारण सी दिखने वाली बिल्डिंग कई बार गुजरा रहूँगा इधर से पर पता नहीं था। अंदर जाने पर देखा पकड़े गए लोगों को उनकी भाषा में "तोड़" कर आगे की जानकारी निकाल रहे थे। मेरी रूह अंदर तक कांप गई। लगा जैसे यहां आकर गलती कर दी। तभी एक साहब ने बुलाया

 "अच्छे घर के लगते हो! यहां नहीं आना था " 

" वो मेरे चाचा.. किसी ने बताया.." हलक से आवाज धुंआ हो रही थी। 

भटेला ने आगे की बात बताई। साहब ने बोला कि राजा चाचा भारी मात्रा में गांजे के साथ पकड़े गए हैं और पूछने पर बताया नहीं की माल किसका है और किसको पहुंचा रहे थे। हमने केस बना दिया है और यहां सिर्फ पूछताछ के लिए लाते हैं बड़ी जेल शिफ्ट कर दिया है। थोड़ी देर में उनकी शक की सूइयां हम पर आने लगे उससे पहले हम वहाँ से निकल लिए। 

पर पापा ने कह दिया था राजा चाचा की मदद तो करनी होगी , बाहर निकालने के लिए। एक वकील खोजा और भाग दौड़ भी की फिर उनसे मिलने का मौका मिला। 

" ए तू क्यों आया? तेरे को इधर नहीं आने का था..सही जगह नहीं ये " राजा चाचा के अंदर का दर्द उनकी आवाज से बाहर आ रहा था। 

" पापा ने भेजा है.. आप बता क्यों नहीं देते की किसने कराया आपसे?" 

" अभी तू आया क्या इनवेस्टिगेशन को? छोड़ ना.. तेरे पापा कभी मुझे पैसे नहीं देने वाले थे, अभी मुझे बाहर निकालने का नौटंकी क्यों?"

मुझे उनकी बाते बुरी नहीं लग रही थी ना ही उनके लिए बुरा लग रहा था। वह जिस हाल में थे गलती उनकी ही थी। 

पूरी गली में नया चर्चा यही गर्म था कि पंडित का भाई बाहर नहीं आएगा लंबा अंदर गया। मुझे शर्म आती थी और नफ़रत भरते गई मेरे दिल में गली के लिए, गली के लोगों के लिए। 

उस शाम देवी लाल का लड़का धमकी दे गया 

" तुम्हारे घासलेट ने हमारा धन्धा खाया है, देखना मंहगा पड़ेगा " 

ऐसी धमकियाँ वहाँ रोज लोग एक दूसरे को देते थे। रात को हम जब नींद की तीन पहर को सो चुके थे फोन की घंटी बजने लगी। पापा के चेहरे पर उड़ती हवाईयां साफ बता रही थी परेशानी बड़ी है। 

" हीरो का फोन था " 

" इस समय?"

" हाँ खबर पक्की है किसी ने हमारे गोदाम में ड्रग्स रखवा दिए है फंसाने के लिए " 

सुबह के साढ़े तीन बज चुके थे और मेरे कदम तेजी से गोदाम की ओर बढ़े। दिमाग एड्रेनेलिन रश का शिकार, पैर हाथ सब कांप रहे थे। भटेला साथ ही था पर हिम्मत जवाब दे रही थी। जिसने यह जाल फैलाया है वह कहीं रंगे हाथ पकड़वाना चाहता हो तो क्या होगा? आजू बाजू नजर घुमाई तो कोई नजर नहीं आया। वैसे भी थोड़ी देर में सब दुकाने खुलने लगती पर गोदाम एक गली अंदर था। साफ दिख रहा था उपर के म्हाले को जाती सीढियों से स्टील की शीट हटा कर किसी ने अंदर कुछ डाला था। शटर खोलते ही सामने गिरे थे दो पैकेट। भटेला ने हाथ में उठाया, सूंघा और बोला 

" क्या करना है अब इसका? " 

यह कोई सवाल था। मौत का इन्तेजाम हाथ में लेकर कौन खड़ा रहता है भला। मैंने पैकेट तेजी से छीना और वहाँ से निकला। आँखों के आगे कभी अंधेरा तो कभी चाचा का नीला पीला पड़ा चेहरा नजर आ रहा था। जाने कब तक चला, जैसे हर नजर मुझे घूर रही हो। मीठी नदी के किनारे पहुंच कर जोर से हवा में घुमा कर उस मुसीबत को गटर के सुपुर्द किया। नई जिंदगी मिलना किसे कहते हैं? महसूस हुआ तभी। घर आकर वापस थोड़ी देर में फिर दैनिक समयानुसार वापस दुकान चले आए। थोड़ी देर में जैसे कि अंदेशा था दो पुलिसकर्मी वहाँ आए और कहने लगे कि आपके गोदाम की तलाशी लेनी है, मतलब की पूरा इन्तेजाम था। नॉर्मल रहते हुए उन्हें घुमा कर दिखा दिया। वह चले तो गए पर सवाल छोड़ गए कि दुश्मन कौन है? 

राजा चाचा की तारीख थी तो फिर मिलना भी उसी दिन हुआ। मैंने ना चाहते हुए भी सब बताया। चाचा की आँखों से आंसू आ गए। 

" तू नहीं जानता। मैंने अपनी गलतियों से बहुत दुख झेले है और तेरे पापा को भी तकलीफ दी है। आज मेरी वजह से उन पर भी मुसीबत आई। मैं सच किसी लायक नहीं रे। अपने परिवार को तीन टाइम का रोटी जुटाने के लिए कितना मगजमारी किया मैंने। वो देवी लाल का लड़का बोला तुम गाँव से सस्ता माल लाओ हम तुमको धंधे में लगाएंगे। उसमे एडवांस पैसा दिया.. दोगुना। बरसात के लिए छत की मरम्मत भी करानी थी। जानता है मैं ये सब गलत काम है.. पर मेरे को करना था। मेरे को बाहर मत निकाल रे, नहीं तो फिर से ये काम करना पड़ेगा उनके अडवांस के बदले। बहुत खतरनाक जाल है उनका। अभी पैसे खर्च हो चुके है और इधर फ्री का रोटी मिलता ही है। मैं इधर खुश है। सब रोटी का खेल है।"

 देवी लाल! उसका किया धरा था। और क्या उम्मीद कर सकता था मैं? मैंने कहा ना मुझे तो पसंद ही नहीं यह जगह। पर पापा की रोटी वाली थ्योरी ऐसे प्रैक्टिकल में समझेगी यह नहीं सोचा था। कदम बढ़ते जा रहे थे नारकोटिक्स वाले साहब की ओर, वह किसी से बात करने में मशगूल थे। देवी लाल का चिट्ठा खोलना था, सब बताना था.. चाचा की बात, कल की बात ।तभी कदम ठिठक गए। देवी लाल एक कड़ी हो सकता है पर उसके उपर और लोग भी होंगे। यह सब यहीं खत्म नहीं होगा। बात बढ़ेगी और फिर वही सब होगा जो मुझे पसंद नहीं। 

" राजा ने कुछ बताया?" साहब ने सवाल दागा मुझे नजदीक देख कर 

" नहीं " मैंने धीरे से सिर हिला दिया। मैं नहीं पड़ना चाहता इन सबके बीच, मुझे कोई हीरो नहीं बनना है। मुझे सुकून से दो वक्त की रोटी जुटानी थी। यह साहब हो या देवी लाल, पापा हो या चाचा... या हीरो.. या मैं, सब अपनी अपनी रोटी को बचाए रखने के लिए जुगत में लगे थे। चाचा की बात कान में गूंज रही थी।

" सब रोटी का खेल है "


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Sushma Tiwari

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • anil makariya · 3 years ago last edited 3 years ago

    बढ़िया कहानी ।

  • Ankita Bhargava · 3 years ago last edited 3 years ago

    जबरदस्त

  • Namrata Pandey · 3 years ago last edited 3 years ago

    Nice👏👏👏

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