प्रलय - अभी बाकी है!

(20वीं सदी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में घटी सबसे भयानक त्रासदी 1943-44 में बंगाल में जो भीषण अकाल पड़ा वह करीब 40 लाख लोगों की जिंदगी लील गया था। यह प्राकृतिक आपदा नहीं थी बल्कि ब्रिटिश सरकार द्वारा पैदा किया गया एक कृत्रिम अकाल था। चर्चिल के आदेश पर अंग्रेजों ने एक साल से महज कुछ अधिक समय में 40 लाख भारतीयों को मार डाला था। अमेरी और वॉयसराय आर्किबाल्ड वॉवेल ने चर्चिल से अनुरोध किया कि भारत के लिए तत्काल अनाज भेजा जाए। इस पर चर्चिल ने एक टेलीग्राम भेजकर पूछा जिसका भाव यह था कि इतनी भुखमरी है तो गांधी अब तक क्यों नहीं मरे?)

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 09 Dec, 2020 | 1 min read
Humanity Stories by Sushma Historical fiction

पूरे पचपन दिन हो चुके थे। सोमा ने आकाश को उम्मीद भरी निगाहों से देखा। उसे पता था वहाँ सिर्फ नाउम्मीदी दिखेगी.. तूफान ने जाते-जाते फसलें बर्बाद कर तबाही को आमंत्रित कर दिया था, कम से कम इतनी तो बर्बादी हुई थी की वे ग्रामीण इलाके वाले चावल तक के लिए आश्रित हो गए थे। द्वितीय विश्व युद्ध चरम सीमा पर था। अपने कितने लोग मारे जा रहे थे। सोमा व्योम की प्रतीक्षा कर रही थी। व्योम कलकत्ता से आने वाला था.. खाने का शायद कुछ प्रबंध हो जाए। व्योम सोमा का देवर था.. आने वाले बैशाख के बाद उसकी शादी भी होनी थी पर इस अकाल ने सब खुशियां छिन ली थी। सोमा का पति जो बीमार रहता था अकाल के पहले चरण में ही काल की भेंट चढ़ गया। व्योम की अंग्रेजी सिपाही लोगों के साथ थोड़ी पहचान थी। उसने कहा था कि वो कलकत्ते से अच्छी खबर लेकर ही लौटेगा।

दोपहर चढ़ने तक शरीर में वैसे ही प्राण तत्व कम सा महसूस होने लगता था। सोमा ने नन्हें तपन पर नजर डाली जो गहरी नींद सोया था।

" अच्छा है ये सोता रहे.. उठेगा तो क्या दूंगी खाने को? घास मिलना भी मुश्किल हो रहा है गांव में अब.." हलक मे ही शब्द फंस कर रह गए और आंसू पोंछ कर एक लोटे पानी से पेट की आग बुझाई।

व्योम को देखते ही सोमा की बांछे खिल गई। पर जैसे ही वह नजदीक आया चेहरे की मायूसी साफ बता रही थी कि खबर अच्छी नहीं है।

" क्या हुआ? क्या बोले साहब लोग..? "

" क्या बोलेंगे.. युद्ध चल रहा है सारी रसद वहीं भेज दी गई.. हमारी जान से ज्यादा फौजी लोगों का जिंदा रहना जरूरी है"

" बच्चों को तो कम से कम.. पूरे देश में थोड़े अकाल पड़ा है.. कोई मदद क्यों नहीं करता.." सोमा का व्यथित मन उम्मीद की आखिरी डोर को छूटते देख और व्यथित हो उठा।

" कोई नहीं सुन रहा.. वो कहते है जापानी लोग कभी भी इधर आ सकते है.. बर्मा उनके कब्जे में है.. कोई गाड़ी इधर नहीं आएगी अनाज लेकर.. खतरा है! "

" पूरा गांव श्मशान बन गया है व्योम.. अब क्या खतरा होगा?"

व्योम की रिक्त आँखे जैसे कुछ और भी कहना चाह रही हो पर सोमा पूछने की हिम्मत नहीं कर पाई। तपन की रोने की आवाज़ ने ध्यान खिंच लिया था।

तपन मिट्टी खाने लगा था। सोमा अब नहीं रोकती थी। शरीर में अब सिर्फ हड्डियों का ढांचा शेष था। अपने नसीब को कोसती कुछ देर रोने की कोशिश करती पर उदर अग्नि में वो भी जैसे भाप में परिवर्तित हो चले थे। हाय! क्यों जन्म दिया जो पेट नहीं भर सकती। छाती से दूध भी नहीं निकल सकता था। व्योम कलकत्ते से पाव भर चावल लाया था छुपा कर। हांडी चढ़ा कर उसे पकाया और थोड़ा व्योम के लिए परोस दिया। 

खाट पर लेटे-लेटे व्योम आकाश में उड़ते गिद्धों को देख रहा था जिनके लिए अब पूरा का पूरा इलाक़ा श्मशान ही था। कल रास्ते हड्डियों का ढेर देखते हुए आया था। मौत का खौफ आँखों में बस चुका था।

" ये चावल.. खा लो थोड़ा "

" सब बना दिए क्या?.. तपन के लिए छोड़ना था ना, हमारा क्या पानी पी लेते.." थाली आगे लेते हुए व्योम बोला। 

" जो हम ही ना जिंदा रहे.. उसको कौन देखेगा? जब तक जिएंगे सब साथ ही जिएंगे.. तुम बाबू सच बताओ क्या बात है.. कुछ कहना चाहते हो?"

" जानती हो.. जहाज में भर भर के हमारा ही अनाज हमारे समुद्री रास्ते से दूसरे देश को भेज रहे है अंग्रेज! हमारी जान की कोई कीमत नहीं है.. वो सिपाही लोग बताये कि गवर्नर ने चिट्ठी लिखी थी उनके प्रधानमंत्री को.. वो मालूम क्या बोलता है.. ये लोग इतने बच्चे पैदा करते हैं.. इनको भूखो मरने दो.. जान बचाने के लिए लोग कलकता भाग के जा रहे हैं..मगर वहाँ कोई मदद नहीं मिल रही है.. हम सब मरने वाले है.. " कहते हुए व्योम के आंसुओ का बाँध टूट पड़ा था।

" बाबू! मेरा तो एक ही बच्चा है.. तो क्या हमे खाना देंगे क्या अंग्रेज? "

" तुम नहीं समझी.. मैं वहाँ कलकता में रूपा से मिला.. " व्योम अब नजरे चुरा रहा था। 

रूपा उसकी होने वाली पत्नि थी जो दूसरे गांव में रहती थी। अकाल ने पहले ही उसके दो भाई निगल लिए थे। 

" रूपा.. रूपा वहाँ क्या कर रही है? क्या उन्हें कोई काम मिल गया है?.. मुझे पता था.. ये चावल उसी ने दिए होंगे!" व्योम के उत्तर से अंजान सोमा प्रसन्नता से उछल पड़ी।

" हाँ काम मिल गया है उसे.. कलकत्ता में भूख से मर रही औरतों को... द.. देह व्यापार का काम दिया जा रहा है.. और उसी शर्त पर उनके परिवार को राशन। रूपा ने कहा कि वो मुझसे शादी करना चाहती है है ताकि मैं उसका दलाल बन जाऊँ.. ऐसे हम दोनों के परिवार जीवित रह सकते हैं.. मैं क्या करूं.. ईश्वर इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है? "

सोमा स्तब्ध थी। वहाँ पड़ोस में पड़े कंकालों की तरह शांत.. अब उसे भूख महसूस नहीं हो रही थी।

" तुम क्या सोचे बाबू?" कुछ पलों के मौन के बाद तपन के रोने की आवाज ने उसे सच्चाई स्वीकारने की हिम्मत दी।

" मैं हाँ बोल आया.. पहले सोचा कि शर्म से मरने के बजाय भूख से मर जाऊँ.. परंतु अब सोचता हूं तपन को तो दुनिया देखने का अधिकार है.. "

" तुम अपने दिल की सुनो बाबू.. ऐसे निष्ठुर दुनिया को देखकर क्या करेगा वो.. जब बर्दाश्त नहीं होगा तो इसे लेकर कुंए में कूद जाऊँगी "

व्योम नहीं माना। वापस कलकत्ता चला गया। कई दिनों के लम्बे इंजतार के बाद भी ना वापस आया और ना ही कोई ख़बर दी। गांव में जिंदा बचे कुछ लोगों ने कलकत्ते जाने का निर्णय लिया। बचे हुए शेष प्राण लिए सोमा भी तैयार हो गई। व्योम से लगाई उम्मीद टूट चुकी थी। दिमाग भी अब पहले जितना सोचने की ताकत नहीं रखता था। सही, गलत, अच्छा, बुरा.. कुछ नहीं.. उसे सिर्फ भूख नजर आती थी। सोमा को दुख नहीं हो रहा था। अब कुछ महसूस नहीं होता था। रास्ते भर लाशों और हड्डियों के ढेर को देखकर भी ना दुख हुआ ना डर लगा। तय कर लिया था अपनी देह देकर भी बस तपन को जिंदा रखना था।

तपन अब कम हिलता डुलता था। ज्यादा सोता था। जब जागता था तो सिर्फ रोता था। कलकत्ते का दृश्य और हृदय विदारक हो चला था। सड़कों पर घूमते हड्डियों के ढांचे। भूख से तड़पते - मरते लोग। कचरे के डिब्बों से खाना ढूंढते बच्चे और उस खाने के लिए गली के कुत्तों से लड़ते हुए मरते बच्चे। वेश्यालय के बाहर लंबी कतार.. अब वहाँ जगह नहीं थी.. औरतों की काया औरतों सी कहां बची थी? कोई दया नहीं कर रहा था.. कोई खाना नहीं दे रहा था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बढ़ते खतरे को देखते हुए सबने अनाज की जमाखोरी कर रखी थी। लूटपाट करने जितनी ताकत किसी अकालग्रस्त में नहीं बची थी।

सोमा को अब डर लग रहा था। सोचा गलती कर दी। नहीं आना चाहिए था। अचानक उसे ख्याल आया तपन काफी देर से रोया नहीं था। सोमा ने उसे हिलाया.. वो नहीं उठ रहा था। सीने से कान लगाया.. कोई हरकत नहीं थी। सोमा हँसने लगी। जोर जोर से हँसी। महीनों बाद ऐसे हँसी। आकाश पट गया उसके हँसी के चित्कार से। 

"अब तपन को कुत्तों से लड़ना नहीं पड़ेगा.. अब उसे भूख से तड़पना नहीं पड़ेगा "

सोमा चिल्ला रही थी पागलों की तरह.. लोग देख रहे थे। ठीक वैसे ही जैसे पहले देख रहे थे।


-सुषमा तिवारी


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Sushma Tiwari

SushmaTiwari

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत ही मार्मिक और भयावह, कितना कठिन रहा होगा,

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