प्रीति की माँ बनने की कोशिश इस बार भी असफल हुई। राजेश कई बार समझा चुके समाज और परिवार के दबाव में खुद को तकलीफ देना बंद करो। पर क्या करे? माँ का तर्क, इतनी बड़ी विरासत का कोई तो वारिस हो..और अपने जो वो इतनी ममता भरे बैठी है कहाँ लुटाये? बार बार टूटते सपनों के बीच एक नया फैसला था जब साधन और ममता मौजूद हैं तो क्यूँ ना अनाथ आश्रम से ममत्व को तरसते बच्चों पर न्यौछावर करें... आज माँ कहने के लिए उसके पास कई नन्ही आवाजें है, उसका सपना पूरा हुआ।
हौंसला
सपने टूटने के बाद फिर देखने के हौंसले को जिन्दगी कहते हैं
Originally published in hi
Sushma Tiwari
31 Aug, 2019 | 0 mins read
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