मैं पाषाण हूं

तुम इंसान हो पाषाण हो ही नहीं सकते

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 31 Dec, 2019 | 1 min read

मैं पत्थर से : मैं भी तुम हूं।

पत्थर : तुम! और मैं? तुम मुझसे नहीं हो सकते ।

मैं : क्या मेरा दिल तुम्हारा जैसा नहीं है? बिल्कुल पत्थर सा?

पत्थर : तुम केवल मुझे बाहर से जानते हो।

मैं : क्या इसका मतलब यह है कि तुम भी महसूस कर सकते हो ?

पत्थर : बेशक! और कभी-कभी मैं आंसू भी बहाता हूं, लेकिन मैं अपनी प्रवृति के अनुसार अपनी रचना को फिर से हासिल करता हूं, यह मेरा प्रकृति से दिया हुआ स्वभाव है।

मैं : क्या तुम्हारे पास स्मृति भी है?

पत्थर : क्यों नहीं होगी? मेरी तो खुद की जीवनी भी मैंने लिखी है, लेकिन यह हर किसी के लिए, पढ़ने के लिए खुला नहीं है।

पत्थर : सुनो? मैं कहीं फेंका हुआ था, फिर मैं निर्माण के लिए पट्टियों मे बदल गया। मैंने एक बार एक पुल के निर्माण में भाग लिया, और एक बार बहते हुए समुद्र की लहरों का सामना किया। यहाँ मैं अब तुम्हारे सामने हूँ, जैसा कि तुम देख रहे हो, तुम्हारे घर में दरवाजे पर मेहराब हूं। इससे ज्यादा अपमानजनक क्या होगा?

मैं : तो, तुम गायब नहीं हुए?..मतलब तुम्हारा अस्तित्व कब तक रहेगा?

पत्थर : गायब? कभी नहीं। तुम लोग आकर चले जाओगे। मैं रहूँगा क्यूँकी मैं सहन करता हूं.. अपना भार, तुम्हारा भार। तुम में से कुछ मेरी सतह पर एक निविदा हाथ का निशान छोड़ते हैं, प्रेम की निशानियाँ, तो कुछ लोग बुलेट-होल छोड़ते हैं। और मुझे इन दोनों के बीच का अंतर पता है। तो तुम मैं नहीं हो सकते क्यूँकी पाषाण होना आसान नहीं।

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