मेरा गांव, मेरा शहर

हमे गांव कब कब याद आता है

Originally published in hi
Reactions 0
1239
Ragghi
Ragghi 09 Jun, 2020 | 0 mins read

ए वक़्त के पाबंद शहर तू भी कभी मेरे गांव सा बेफ़िक्र होकर तो देख,

हर शुबह ताऊ की बैठक पे तू भी हुक्का सुलगा कर तो देख...


ए रात दिन दौड़ते शहर तू भी कभी मेरे गाँव सा ठहरकर तो देख,

हर दोपहर मोहल्ले के नीम के नीचे तू भी तांश खेलकर तो देख...


ए सोशल मिडिया पर ग्रुप बनाते शहर तू भी कभी मेरे गाँव सा मेलजोल बढ़ाकर तो देख,

हर शाम गली के नुक्कड़ पे तू भी हंसी ठट्ठा लगाकर तो देख...


ए स्विगि जोमाटो से भूक मिटाते शहर, तू भी कभी पेट भरकर तो देख,

हर रोज घर के चूल्हे पे बैठकर, तू भी माँ के हाथ का खाकर तो देख...


ए वक़्त के पाबंद शहर तू भी कभी मेरे गांव सा बेफ़िक्र होकर तो देख...

0 likes

Published By

Ragghi

Ragghi

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.