पतंग सी ज़िंदगी

ना जाने कितनी समानताएं है जिंदगी और पतंग में।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 14 Dec, 2020 | 1 min read
Kite lifespan

जिंदगी की डोर,

इधर एक छोर उधर एक छोर,

पतंग सी है जिंदगी

उड़ती रहती है इधर-उधर, 

ऊँचाइयाँ छूती जिंदगी, 

किसी की कट कर वापिस ज़मीं की ओर।


रंग बिरंगे कागज़ों जैसे रिश्तों से बनी, 

कोई छोटी, कोई बड़ी, 

पतंग सी है जिंदगी 

उड़ती रहती है इधर-उधर, 

कहीं सौ बरसों की जिंदगी, 

किसी की आधे रास्ते में ही डोर टूटी। 


पतंग के मांझों सी समीकरण जीवन की, 

कोई सूती, कोई रेशमी, 

 पतंग सी है ज़िंदगी 

उड़ती रहती है इधर-उधर, 

किसी की सपाट सुलझी मांझें की चकरी, 

कहीं उलझनों में उलझी टूटी फूटी मांझें की गुल्ली । 



स्वरचित व मौलिक

©चारु चौहान


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Charu Chauhan

Poetry_by_charu

Comments

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  • Mayur Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ है

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