स्त्री 'वीर रस'

स्त्री भी एक वीर रस है। उसे कम आँकने की ग़लती ना करना।

Originally published in hi
Reactions 1
448
Charu Chauhan
Charu Chauhan 18 May, 2022 | 0 mins read
Womanpower Womanlife gender equality strong Care Woman

मत कहना मुझे तुम त्याग की मूरत,

ना कभी देवी कह तख्त पर बैठना।


मत निहारना घंटों तुम मेरी सूरत,

ना कभी सहारा देने की बातें करना।


मत बांटना तुम दहलीज बोल ज़रूरत,

ना समान दर्जा देने का भाषण करना।


छोड़ दो बस तुम मेरे हाल में मुझे,

ना मेरे हक़दार बनने का ख़्वाब रखना।


कहने दो मुझे मेरी कहानी मेरी जुबानी,

ना मेरा कहानीकार ख़ुद को समझना।


साहित्यिक वीर रस भी कहलाना है मुझे,

ना स्त्री को बस श्रृंगार रस तुम लिखना।


मैं गाना चाहती हूँ अपने गीत, अपने सुरों में,

ना मेरे गीतकार बनने का ख़्याल संजोना।


लहरा सकती हूँ मैं तरु सी बयार संग,

ना बस मेरे लता होने की कल्पना करना।।



© चारु चौहान

स्वरचित व मौलिक


1 likes

Published By

Charu Chauhan

Poetry_by_charu

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.