Quarantine day 4 सपनों का घर

सपनों का घर

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Manu jain
Manu jain 04 Apr, 2020 | 1 min read

ज़्यादा नहीं तुझसे ऐ खुदा,

बस एक सुकून से घर की मैं माँग करता हूँ,

ना कोई शोर हो जहाँ बस कुदरत की आवाज़ें हों,

मेरे सपनों के जैसे घर की मैं खुवाहिश तुझसे करता हूँ।

इस शोर शराबे से दूर कहीं मेरा वो गरीबखाना हों,

जहाँ किसी का नहीं बस तेरा ही आना जाना हो,

कुछ और नहीं बस तू ही मेरा नज़राना हो,

जहाँ पैसों की मुझे चिंता ना हो बस तेरा नाम मुझे कमाना हो।

जहाँ ये लोग नहीं मुझे परखने वाला बस तू हो,

तुझसे ताने खाने में भी एक रूहानी सुकून हो,

कभी डाँटे मुझे कभी मुझसे नाराज़ भी हो,

कोई और नहीं मेरे मौला बस तू ही मेरे पास हो।

मेरे प्रेम का भी सिर्फ तुझसे आगाज़ हो,

तुझी से आशिक़ी और तुझी से इज़्हार हो,

कोई अगर देखे मुझे तो बेशक पागल समझे,

बस तेरी मोहब्बत का मेरे दिल में जुनून और खुमार हो।

मेरे सपनों का घर चाहे आलिशान चाहे झुग्गी हो,

तेरी रज़ा में रहने की बस मेरे दिल में तसल्ली हो,

तेरी निगाहें मेरे खुदा मुझ पर हर पल सवल्ली हों,

बस तुझसे ही मौला मेरी दिल-लगी हो।

बस तुझसे ही मौला मेरी दिल-लगी हो।

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