बचपन

बच्चे मन के सच्चे

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Manu jain
Manu jain 19 Jun, 2020 | 1 min read

एक बचपन ऐसा भी था,

छोटी सी उम्र का।

लाचारी, ग़रीबी की मार से ,

खो दिया वो कोमल बचपन ।

खेलना पसंद था खिलौनों के संग, 

किस्मत की लकीरों ने खिलौना बनाया था उसको।

लेकर चल रहा वो,

कंधों पर जीवन का बोझ,

किताबो की जगह रद्दी का बोझ।

बड़े बड़े सपने बुनता नही ,

बस दो वक़्त की रोटी की खोज।

जेबों मे उड़ने के सपने लिए , अकेले चल रहे है वो,

ईंटो के भट्टो मे तपकर ,

अपना पेट भर रहे वो।

पूछ रहे बस एक सवाल,

क्यों नही होता सबका बचपन एक समान?

क्यों उनके हाथों मे फूलझड़ी,

और हमारे बारुद से सने ।

क्यों उनका बचपन रंगो से भरा ,

और हमारा बेरंग हुआ।

नन्ही उंगलियों से बीड़ी के धागे बांधते है हम,

भार उठाया उम्र से ज़्यादा , जिम्मेदारी निभा रहे हम।

कारखानों मे मरते है जब औजारों से काटता है,

नन्हा दिल हमारा , सुबक सुबक कर रो भी नहीं पाता है।

जूठी प्लेट उठाकर जिसने अपनी भूख मिटाई, 

बाकियों का पेट भरकर, उसने चैन की नींद पाई।

हां , वो भी एक बचपन था,

जो ज़िम्मेदारियों से भरा हुआ था।

बाल श्रम दिवस निषेद्ध है आज माना लो, 

इन मासूम बच्चों को निष्ठुर हाथों से आज बचा लो।

अब बचा लो।।


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Manu jain

ManuJain

Comments

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  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Well expressed

  • Shah طالب अहमद · 3 years ago last edited 3 years ago

    Wow content

  • Manu jain · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thank you Sonia Ji 🙌

  • Manu jain · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thank you Talib ji🙏

  • Sushma Tiwari · 3 years ago last edited 3 years ago

    बेहतरीन, सारा दर्द समेट लिया तिरस्कृत बचपन का

  • Manu jain · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया 🙏 दी

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