शास्वत दिर्घ मात्रिक

#10articlechallenge Chapter 7

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Manu jain
Manu jain 08 May, 2020 | 1 min read

शास्वत दिर्घ मात्रिक और संज्ञा को कभी मात्रा गिरा कर लघु नही किया जा सकता।

शास्वत दिर्घ मात्रिक - दो लघु के मेल से बने दिर्घ मात्रिक शब्दों को शास्वत दिर्घ कहते हैं

,उदाहरण -: अब , जब , सब

शास्वत दिर्घ- "कब" एक शास्वत दिर्घ शब्द है इसे 2 ही माना जायेगा इसे मात्रा गिरा कर 11 या 1 नहीं किया जा सकता।

संज्ञा - मात्रा गिराने पर हम उस शब्द के उच्चारण को बदल देते है जिससे कई बार उस संज्ञा का अर्थ बदल

जाता हैं जैसे मीरा की मात्रा गिरा कर

मात्रा गिराने से उसके उच्चारण और स्वर दोनों में ही अंतर आता हे

अगर हम संज्ञा की मात्रा गिराए तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता हैं

जैसे मीरा की मात्रा गिरा कर मीर करेंगे तो नाम ही बदल जायेगा

वेसे ही दीन की मात्रा गिरा कर दिन तो अर्थ बदल जायेगा

और शाश्वत दिर्घ खुद दो मिलकर एक एक दिर्घ हुए हैं

उनको फिर से 1 नही कर सकते

मात्रा गणना केवल एक छूट हे

इसे छूट के रूप में ही जहाँ सबसे ज्यादा जरूरत हो वहाँ use करना चाहिए

अगर हम ज्यादा मात्रा गिराते हैं तो बाद में पढ़ने वालों के लिए भी कठिनाई होती हैं

और इससे हमारे शब्दकोश की कमीं भी पता चलती हैं ।

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