कुछ अशआर

अशआर ग़ज़ल के अधूरे शेर

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Manu jain
Manu jain 03 May, 2020 | 1 min read

बन पंछी पिंजरे में रहना क्या सही है

दिल टूटा है मिरा यह कहना क्या सही है

शीशा गल के जुड़ गया ये लाज़मी है

उसी शख्स से दुबारा दिल मिलना क्या सही है

अल्फ़ाज़ कुरेद कोरे पन्नों पर लिखा है

ख़त पलकें भिगोकर ही पढ़ना क्या सही है

अब अफवाहों से अखबार भर गए है

बदनामी की ख़बर सुन छिपना क्या सही है

तिरे लिए गर मेरी बातें और मैं ग़लत है

फिर तुम ही कहो शब-ए-हिज्र सहना क्या सही है

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